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Why IAF Still Flies Vintage Jet: चुरू में भारतीय वायुसेना का जगुआर क्रैश, पुराना जेट क्यों अभी भी उड़ रहा है?

Why IAF Still Flies Vintage Jet: चुरू में भारतीय वायुसेना का जगुआर क्रैश, पुराना जेट क्यों अभी भी उड़ रहा है?

Why IAF Still Flies Vintage Jet: कभी-कभी पुरानी चीज़ें इतनी भरोसेमंद होती हैं कि नई चमक-दमक के बावजूद उन्हें छोड़ना मुश्किल हो जाता है। ऐसा ही कुछ है भारतीय वायुसेना का जगुआर क्रैश से जुड़ा मामला। 9 जुलाई 2025 को राजस्थान के चुरू ज़िले में भारतीय वायुसेना जगुआर जेट क्रैश हो गया। इस हादसे में दो पायलट्स की जान चली गई। ये इस साल का तीसरा Jaguar Crash था, फिर भी भारतीय वायुसेना इस 1960 के दशक में बने जेट को 2040 तक उड़ाने की योजना बना रही है। सवाल ये है कि आखिर क्यों वायुसेना इस पुराने जेट पर इतना भरोसा कर रही है?

भारतीय वायुसेना जगुआर की कहानी 1960 के दशक से शुरू होती है, जब ब्रिटेन और फ्रांस ने मिलकर पहली बार एक जेट बनाने का फैसला किया। इस जेट का नाम था SEPECAT जगुआर। इसे बनाने वाली कंपनी SEPECAT थी, जो फ्रांस की Breguet और ब्रिटिश एयरक्राफ्ट कॉरपोरेशन का जॉइंट वेंचर थी। शुरू में इसे ट्रेनिंग जेट के तौर पर बनाया गया था, लेकिन बाद में ये एक ताकतवर फाइटर-बॉम्बर बन गया। इसकी खासियत थी इसकी सुपरसोनिक रफ्तार और न्यूक्लियर हथियार ले जाने की क्षमता। 1979 में भारतीय वायुसेना ने इसे पहली बार अपनाया। तब से लेकर आज तक, भारत ने 160 से ज़्यादा जगुआर जेट्स अपने बेड़े में शामिल किए, जिनमें से करीब 115 अभी भी सेवा में हैं।

लेकिन इस जेट की उम्र और बार-बार होने वाले हादसों ने सवाल खड़े किए हैं। इस साल मार्च में अंबाला और अप्रैल में जामनगर में भी जगुआर क्रैश हुए। पिछले एक दशक में कम से कम 12 जगुआर हादसों का शिकार हो चुके हैं। फिर भी भारतीय वायुसेना इसे क्यों नहीं छोड़ रही? इसका जवाब है – ज़रूरत और भरोसा। भारतीय वायुसेना के पास इस वक्त सिर्फ 31 स्क्वाड्रन हैं, जबकि उसे 42 की ज़रूरत है। नए स्वदेशी जेट, जैसे HAL तेजस, में देरी हो रही है। आयात के विकल्प भी आत्मनिर्भरता की नीति की वजह से सीमित हैं। ऐसे में वायुसेना को अपने पुराने जेट्स, जैसे Indian Air Force Jaguar, पर निर्भर रहना पड़ रहा है।

जगुआर की एक और खासियत है इसका “डीप पेनेट्रेशन” रोल। ये जेट भारत के न्यूक्लियर हथियारों को ले जाने में सक्षम है और कम ऊंचाई पर उड़ान भरने में माहिर है। इसके पुराने इंजन और तकनीक को कई बार अपग्रेड किया गया है। अभी करीब 60 जगुआर जेट्स को DARIN III वर्जन में अपग्रेड किया जा रहा है, जिसमें आधुनिक इजरायली रडार और अमेरिकी AIM साइडविंडर मिसाइलें लगाई जा रही हैं। ये जेट्स कम से कम 2035 तक सेवा में रहेंगे, जबकि बाकी जेट्स 2030 तक रिटायर हो सकते हैं।

इसके अलावा, जगुआर की एक और खूबी है इसकी कम लागत और आसान रखरखाव। उदाहरण के तौर पर, इसके इंजन को सिर्फ 30 मिनट में बदला जा सकता है। ये खासियत इसे बड़े ऑपरेशंस में तेजी से दोबारा तैयार करने में मदद करती है। हालांकि, दूसरे देशों ने इस जेट को रिटायर कर दिया है, जिससे स्पेयर पार्ट्स की दिक्कत होती है। लेकिन वायुसेना ने 2018 में 40 पुराने जगुआर जेट्स खरीदकर उनके पार्ट्स का इस्तेमाल किया, ताकि बेड़े को चालू रखा जा सके।

मई 2025 में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जगुआर ने अपनी ताकत दिखाई। इस ऑपरेशन में इसने पाकिस्तान वायुसेना के खिलाफ लंबी दूरी की हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों का इस्तेमाल किया और दुश्मन के एयरबेस पर हमले किए। ये दिखाता है कि भले ही ये जेट पुराना हो, लेकिन Jaguar Crash के बावजूद ये अभी भी वायुसेना का भरोसेमंद हथियार है।

भारतीय वायुसेना जगुआर की कहानी पुराने और नए के बीच एक जटिल संतुलन की है। जब तक नई तकनीक और जेट्स पूरी तरह तैयार नहीं हो जाते, तब तक ये पुराना योद्धा वायुसेना की रीढ़ बना रहेगा।

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