महाराष्ट्र की सियासत इन दिनों एक ऐसे विवाद में उलझी है, जिसने सत्ता और विपक्ष दोनों को आमने-सामने खड़ा कर दिया है। मामला राज्य के उपमुख्यमंत्री और एनसीपी प्रमुख अजित पवार और सोलापुर जिले में तैनात IPS अधिकारी अंजना कृष्णा से जुड़ा है।
फोन कॉल जिसने बढ़ा दिया विवाद
31 अगस्त को राजस्व विभाग की टीम और पुलिस अधिकारी अवैध मिट्टी खुदाई रोकने के लिए सोलापुर के कापरे वस्ती इलाके में पहुंचे थे। कार्रवाई के बीच अचानक उपमुख्यमंत्री अजित पवार का अंजना कृष्णा को फोन आया। इस कॉल में पवार ने कथित तौर पर कार्रवाई रोकने को कहा। इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते ही बवाल मच गया।
अजित पवार की सफाई
विपक्ष के तीखे हमलों के बीच अजित पवार सामने आए और सफाई दी कि उनका मकसद किसी तरह हस्तक्षेप करना नहीं था। पवार का कहना था कि वे सिर्फ मौके पर बनी तनावपूर्ण स्थिति को शांत करने की कोशिश कर रहे थे।
एमएलसी अमोल मिटकरी का विवादित कदम
मामला यहीं नहीं रुका। एनसीपी के एमएलसी और प्रवक्ता अमोल मिटकरी ने यूपीएससी को पत्र लिखकर IPS अंजना कृष्णा के शैक्षणिक और जाति संबंधी दस्तावेजों की जांच की मांग कर डाली। जैसे ही ये खबर सामने आई, विपक्ष ने इस कदम को पूरी तरह असंवैधानिक और अस्वीकार्य बताते हुए मिटकरी पर निशाना साधा। आलोचनाओं के बाद मिटकरी ने पोस्ट डिलीट कर माफी मांगते हुए कहा कि ये उनकी व्यक्तिगत राय थी, पार्टी की नहीं।
विपक्ष का पलटवार
प्रियंका चतुर्वेदी (शिवसेना-यूबीटी) ने कहा कि जब अजित पवार महिला अधिकारी के सम्मान की बात कर रहे थे, उसी वक्त उनके ही एमएलसी ने उस अधिकारी की जाति पर सवाल उठाकर दोहरा चेहरा उजागर कर दिया।
यशोमती ठाकुर (कांग्रेस) ने इसे शर्मनाक बताते हुए कहा कि शिवाजी-शाहू-फुले-अंबेडकर की विचारधारा का नाम लेने वाले नेता अगर जातिवादी टिप्पणियों पर उतर आएं, तो ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
बड़ा सवाल
इस पूरे घटनाक्रम ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं—
क्या सत्ता पक्ष में बैठे नेता पुलिस अधिकारियों पर अनुचित दबाव डाल रहे हैं?
क्या जाति और व्यक्तिगत दस्तावेजों पर सवाल उठाना राजनीतिक हथियार बनता जा रहा है?
और सबसे अहम—क्या यह विवाद केवल एक फोन कॉल तक सीमित है, या इसके पीछे सत्ता-संघर्ष की बड़ी कहानी छुपी है?
ये विवाद अभी थमा नहीं है। आने वाले दिनों में ये मुद्दा महाराष्ट्र की राजनीति में और उबाल ला सकता है।
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