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मुंबई: पारिवारिक जुल्म से तंग बेटे ने की पिता और दादा की हत्या

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मुंबई: कल्पना कीजिए, एक ऐसा घर जहां हर कोना दर्द की कहानी कहता हो। जहां बचपन की मासूम हंसी की जगह चीखें और आंसू बसते हों। मुंबई की चमचमाती रौनक के बीच, अंधेरी के एक साधारण से घर में, 23 साल के चेतन भात्रे का दिल सालों से चीख रहा था। डिलीवरी बॉय की नौकरी से थककर लौटने पर भी सुकून न मिले, बल्कि ताने और मारपीट का इंतजार हो। आखिरकार, मंगलवार की उस काली रात में, गुस्से की आग ने सब कुछ जला डाला। चेतन ने अपने 57 वर्षीय पिता मनोज और 79 वर्षीय दादा को चाकू के वारों से मार डाला। चाचा अनिल तो किसी तरह बच गए, लेकिन गंभीर रूप से घायल हैं और अस्पताल की बेड पर जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं। ये सिर्फ एक डबल मर्डर की खबर नहीं, बल्कि एक परिवार की टूटती सिसकियों की दर्दनाक दास्तान है, जो हर संवेदनशील दिल को चीर देगी।

चेतन की जिंदगी, जो कभी सपनों से भरी होनी चाहिए थी, उसी बचपन से जहर घुला था। घर के बुजुर्ग दादा, पिता और चाचा मिलकर उसकी मां को इतना तड़पाते रहे थे कि वे आंसुओं की धारा बनकर घर से चली गईं। लेकिन क्या ये काफी था? नहीं। चेतन और उनकी छोटी बहन पर अब पूरी तानाशाही थोप दी गई। शराब की महक से लथपथ शामें, जहां पैसे की मांग चीख-चीखकर होती। चेतन की मेहनत की कमाई, बहन की तनख्वाह, सब लूट ली जाती। “रोज ताने सुनते, रोज मार खाते। मां चली गईं, तो लगा शायद सुकून मिलेगा, लेकिन नहीं… वो तीनों और बेरहम हो गए,” चेतन ने पुलिस के सामने सिसकते हुए बताया। हर रात का डर, हर सुबह का गुस्सा। यह सब जमा होकर एक ज्वालामुखी बन गया। क्या कोई मां का बेटा इतना सह सकता है? क्या कोई घर ऐसा जंगल हो सकता है, जहां प्यार की जगह हिंसा राज करे?

उस मंगलवार की रात, जैसे किस्मत ने आखिरी साजिश रची। रात करीब 11 बजे, थके-हारे चेतन काम से लौटे। घर में फिर वही सीन – पिता की आंखों में लालिमा, मुंह पर पैसे का भूखा चिल्लाहट। “क्यों इतना देर किया? पैसे कहां हैं?” झगड़ा भड़का। दादा ने साथ दिया, चाचा ने हामी भरी। बस, चेतन का सब्र टूट गया। रसोई का चाकू हाथ में आया, और पहला वार पिता पर। खून की धार बहने लगी, मनोज जमीन पर लुड़क गए। गुस्से की लहर न रुकी। दादा पर वार, चाचा पर वार। दादा की सांसें थम गईं, चाचा खून में डूबे लोटने लगे। कमरा चीखों से गूंजा, लेकिन बाहर की दुनिया सो रही थी। ये हिंसा नहीं, सालों की चुप्पी का फूटना था। एक बेटे का, एक भाई का, एक इंसान का विद्रोह।

बुधवार तड़के, जब सूरज की पहली किरणें मुंबई को जगाने लगीं, चेतन एमआईडीसी पुलिस स्टेशन पहुंचा। हाथ बंधे नहीं थे, लेकिन दिल टूटा हुआ था। “मैं तंग आ चुका था… बचपन से यही सताना, यही जुल्म। अब और नहीं सह सकता,” उसने कबूल किया। पुलिस ने तुरंत गिरफ्तार किया, शवों को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजा। चाचा का इलाज जारी है। क्या वे ठीक होंगे, या ये परिवार की आखिरी उम्मीद भी मिट्टी में मिल जाएगी? शहर में हड़कंप मच गया। अंधेरी की गलियां, जो रोज हंसी-खुशी से गूंजती हैं, आज सन्नाटे में डूबी हैं। लोग सवाल पूछ रहे हैं, क्या ये सिर्फ एक हत्या है, या समाज का आईना?

ये कहानी सिर्फ चेतन की नहीं, लाखों उन घरों की है जहां दीवारें गवाह बनकर खड़ी रहती हैं। जहां पिता का प्यार ताने बन जाता है, दादा का आशीर्वाद अभिशाप। मांओं की चुप्पी, बच्चों के आंसू, कब तक? चेतन का गुस्सा हमें झकझोरता है, लेकिन क्या हम सिर्फ सिर झुकाएंगे? या फिर सोचेंगे, कि ऐसे जख्मों को भरने के लिए कितनी जागरूकता चाहिए? आत्मा को छू लेने वाली ये घटना याद दिलाती है, कि प्यार की एक बूंद भी जहर की नदी को रोक सकती है। काश, चेतन को वो सुकून मिला होता, जो हर बच्चे का हक है। काश, ये आखिरी ऐसी दास्तान हो!

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