AAP effect in Maharashtra: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे आम आदमी पार्टी (AAP) के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं रहे। बीजेपी ने 27 साल बाद सत्ता में वापसी करते हुए 48 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि अरविंद केजरीवाल की पार्टी सिर्फ 22 सीटों पर सिमट गई।
दिल्ली में AAP की इस हार का असर सिर्फ राष्ट्रीय राजधानी तक सीमित नहीं है। इसका झटका महाराष्ट्र की राजनीति में भी महसूस किया जा रहा है। खासकर शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) के लिए यह एक बड़ा झटका साबित हो सकता है।
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और शरद पवार बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर लड़ाई लड़ रहे थे। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल उनके लिए एक मजबूत सहयोगी और बीजेपी के खिलाफ मुखर नेता थे। लेकिन अब, जब दिल्ली में AAP बुरी तरह हार गई है, तो महाराष्ट्र में विपक्ष के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
कैसे AAP की हार से महाराष्ट्र के विपक्ष को झटका लगा?
दिल्ली में AAP की हार के बाद शिवसेना (उद्धव गुट) और एनसीपी (शरद पवार गुट) की बीजेपी के खिलाफ रणनीति कमजोर पड़ सकती है।
भले ही महाराष्ट्र में AAP का कोई बड़ा वोट बैंक न हो, लेकिन उद्धव ठाकरे और शरद पवार अरविंद केजरीवाल को एक मजबूत नेता मानते थे, जो केंद्र की मोदी सरकार को चुनौती देने की क्षमता रखते थे।
इंडिया गठबंधन बनने के बाद महाराष्ट्र की विपक्षी पार्टियों और AAP के बीच नजदीकियां बढ़ी थीं। यह देखा गया था कि केजरीवाल, उद्धव ठाकरे और शरद पवार लगातार बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत रणनीति बनाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन अब दिल्ली में AAP की हार के बाद यह रणनीति कमजोर हो सकती है।
केजरीवाल का महाराष्ट्र से पुराना नाता, लेकिन अब अलग राहें
अगर इतिहास देखें तो अरविंद केजरीवाल का महाराष्ट्र से पुराना नाता रहा है।
2011-12 के “इंडिया अगेंस्ट करप्शन” आंदोलन के दौरान जब अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था, तब केजरीवाल इसमें एक अहम चेहरा थे।
यह आंदोलन महाराष्ट्र के रालेगण सिद्धि से शुरू हुआ था, जहां अन्ना हजारे का आश्रम है। लेकिन समय के साथ अन्ना हजारे और केजरीवाल के रास्ते अलग हो गए।
दिलचस्प बात यह है कि हाल ही में अन्ना हजारे ने AAP के खिलाफ बयान दिया और जनता से कहा कि वे आम आदमी पार्टी को वोट न दें।
शिवसेना-एनसीपी और AAP के बीच गहरी होती दोस्ती
AAP और महाराष्ट्र की विपक्षी पार्टियों के बीच संबंध पिछले कुछ सालों में मजबूत हुए थे।
जब मोदी सरकार ने दिल्ली में अफसरों की नियुक्ति और ट्रांसफर पर नियंत्रण के लिए नया कानून लाया था, तब केजरीवाल ने उद्धव ठाकरे और शरद पवार से मिलकर उनका समर्थन मांगा था।
जब केजरीवाल को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किया गया था, तब भी शिवसेना (उद्धव गुट) और एनसीपी (शरद पवार गुट) ने उनके समर्थन में प्रदर्शन किया था।
लेकिन अब, जब दिल्ली में AAP कमजोर हो गई है, तो महाराष्ट्र में भी विपक्षी एकता पर असर पड़ सकता है।
क्या अब बीजेपी को और फायदा होगा?
दिल्ली चुनाव में बीजेपी की जीत से कई राज्यों में उसकी स्थिति मजबूत हो सकती है।
महाराष्ट्र में बीजेपी पहले ही सत्ता में आ चुकी है। लेकिन अब, AAP की हार ने यह संकेत दिया है कि अगर विपक्षी दल एकजुट नहीं होते, तो बीजेपी को रोकना मुश्किल होगा।
शिवसेना (उद्धव गुट) के नेता संजय राउत ने आरोप लगाया कि दिल्ली में भी बीजेपी ने वही रणनीति अपनाई, जो उसने महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और शरद पवार के खिलाफ अपनाई थी।
राउत ने कहा कि बीजेपी ने केंद्र सरकार की एजेंसियों का इस्तेमाल कर विपक्षी नेताओं को दबाव में डाला और फिर चुनावी जीत हासिल की।
हालांकि, संजय राउत पहले भी ऐसे बयान देते रहे हैं, इसलिए इसे सिर्फ एक राजनीतिक आरोप ही माना जा सकता है।
क्या महाराष्ट्र में भी AAP कमजोर हो जाएगी?
महाराष्ट्र में AAP पहले से ही ज्यादा मजबूत नहीं थी, लेकिन केजरीवाल की हार के बाद यह पार्टी और कमजोर हो सकती है।
AAP के कार्यकर्ता महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और शरद पवार के साथ मिलकर बीजेपी के खिलाफ प्रचार कर रहे थे। अब, जब दिल्ली में उनकी खुद की पार्टी कमजोर हो गई है, तो महाराष्ट्र में उनकी मौजूदगी भी सवालों के घेरे में आ सकती है।
AAP effect in Maharashtra: क्या विपक्षी एकता अब टूट जाएगी?
दिल्ली में AAP की हार सिर्फ केजरीवाल के लिए ही नहीं, बल्कि INDIA गठबंधन और महाराष्ट्र की विपक्षी राजनीति के लिए भी एक झटका है।
उद्धव ठाकरे और शरद पवार को अब एक नई रणनीति बनानी होगी, क्योंकि केजरीवाल का दिल्ली मॉडल अब कमजोर हो चुका है।
अगर महाराष्ट्र के विपक्षी दल अब भी एकजुट नहीं होते, तो बीजेपी को रोकना और भी मुश्किल हो जाएगा।
अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या उद्धव ठाकरे और शरद पवार अपनी रणनीति बदलकर बीजेपी को कड़ी टक्कर देने की कोशिश करेंगे या फिर विपक्षी एकता और कमजोर होगी।
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