महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर हलचल तेज हो गई है। मनसे प्रमुख राज ठाकरे के हालिया बयानों ने सियासी गलियारों में नई चर्चाओं को जन्म दिया है। क्या राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे एक मंच पर आएंगे? क्या मराठी अस्मिता के लिए ठाकरे बंधु अपने मतभेद भुलाकर एकजुट होंगे? इन सवालों के बीच बीजेपी नेता आशीष शेलार का बयान भी सुर्खियां बटोर रहा है। आइए, इस सियासी ड्रामे को करीब से समझते हैं।
राज ठाकरे का उद्धव के साथ गठबंधन का संकेत
हाल ही में महेश मांजरेकर को दिए एक इंटरव्यू में राज ठाकरे ने उद्धव ठाकरे के साथ संभावित गठबंधन पर सकारात्मक रुख दिखाया। उन्होंने कहा, “महाराष्ट्र और मराठी अस्मिता की रक्षा के लिए निजी मतभेद छोटे हैं। अगर लक्ष्य एक है, तो एक साथ आना कोई मुश्किल बात नहीं।”
राज ठाकरे ने ये भी जोड़ा कि ठाकरे बंधुओं के बीच जो भी मतभेद हैं, वे महाराष्ट्र के भविष्य की तुलना में छोटे हैं। मराठी स्वाभिमान को बचाने के लिए सभी मराठी नेताओं को एकजुट होने की जरूरत है। इस बयान ने न केवल शिवसेना (उद्धव गुट) बल्कि बीजेपी और अन्य दलों के नेताओं का ध्यान भी खींचा है।
उद्धव ठाकरे की सकारात्मक प्रतिक्रिया
राज ठाकरे के इस बयान का उद्धव ठाकरे ने स्वागत किया है। उनकी सकारात्मक प्रतिक्रिया से ये अटकलें तेज हो गई हैं कि ठाकरे बंधु जल्द ही एक मंच पर नजर आ सकते हैं। अगर ऐसा होता है, तो महाराष्ट्र की सियासत में बड़ा उलटफेर देखने को मिल सकता है। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये एकजुटता बीजेपी के लिए चुनौती बन सकती है?
आशीष शेलार का बयान: दोस्ती अब अतीत
इस पूरे घटनाक्रम में बीजेपी नेता आशीष शेलार का बयान भी चर्चा में है। शेलार ने कहा, “राज ठाकरे मेरे लिए एक समय में व्यक्तिगत मित्र थे, लेकिन अब नहीं। अब मामला पूरी तरह राजनीतिक है। दो पार्टियां क्या फैसला करती हैं, ये उनका आंतरिक विषय है।”
दरअसल, आशीष शेलार और राज ठाकरे के बीच पुराने दिनों में गहरी दोस्ती थी। शेलार अक्सर राज ठाकरे से मिलने उनके आवास कृष्णकुंज और शिवतीर्थ जाते थे। लेकिन अब शेलार ने साफ कर दिया कि ये दोस्ती अतीत की बात हो गई है, और अब उनका रिश्ता सिर्फ राजनीतिक है।
ठाकरे बंधुओं की एकजुटता का असर
अगर राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे वाकई एक साथ आते हैं, तो इसका महाराष्ट्र की सियासत पर गहरा असर पड़ सकता है। मराठी अस्मिता और स्वाभिमान के मुद्दे पर दोनों नेताओं का एक मंच पर आना मतदाताओं के बीच नई ऊर्जा पैदा कर सकता है। लेकिन बीजेपी और एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना इस समीकरण को कैसे देखेंगे, ये आने वाले दिनों में साफ होगा।
क्या है आगे की राह?
महाराष्ट्र की राजनीति में ये नया समीकरण कई सवाल खड़े कर रहा है, कि क्या ठाकरे बंधु अपने पुराने मतभेद भुलाकर एकजुट हो पाएंगे? बीजेपी इस संभावित गठबंधन को कैसे काउंटर करेगी, और मराठी अस्मिता का मुद्दा कितना प्रभावी साबित होगा? इन सवालों के जवाब समय के साथ सामने आएंगे। लेकिन इतना तय है कि महाराष्ट्र की सियासत में अभी और भी ट्विस्ट बाकी हैं।
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