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Babasaheb and Mumbai’s Story: बाबासाहेब आंबेडकर की वजह से महाराष्ट्र का हिस्सा है मुंबई, राज ठाकरे ने बताई कहानी

Babasaheb and Mumbai’s Story: बाबासाहेब आंबेडकर की वजह से महाराष्ट्र का हिस्सा है मुंबई, राज ठाकरे ने बताई कहानी

Babasaheb and Mumbai’s Story: मुंबई की सड़कों पर हर दिन लाखों लोग चलते हैं। यह शहर न सिर्फ भारत की आर्थिक राजधानी है, बल्कि महाराष्ट्र की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धड़कन भी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह शहर महाराष्ट्र का हिस्सा कैसे बना? इस कहानी का एक बड़ा हिस्सा बाबासाहेब आंबेडकर (Babasaheb Ambedkar) से जुड़ा है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के प्रमुख राज ठाकरे ने हाल ही में इस बात को याद किया और बताया कि कैसे बाबासाहेब ने मुंबई को महाराष्ट्र में रखने के लिए पुरजोर समर्थन दिया। यह कहानी सिर्फ इतिहास की नहीं, बल्कि एक ऐसे शख्स की है, जिसने अपने विचारों से एक राज्य की पहचान को मजबूत किया।

जब बात संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन (United Maharashtra Movement) की आती है, तो बाबासाहेब का नाम गर्व के साथ लिया जाता है। 1940 और 1950 के दशक में देश आजादी के बाद नए राज्यों के गठन की प्रक्रिया से गुजर रहा था। उस समय मुंबई को लेकर बड़ा विवाद था। कुछ लोग चाहते थे कि मुंबई को अलग शहर बनाया जाए, क्योंकि यहां कई भाषाएं बोली जाती थीं। लेकिन बाबासाहेब ने साफ शब्दों में कहा कि मुंबई मराठी भाषियों की है और इसे महाराष्ट्र से अलग नहीं किया जा सकता। राज ठाकरे ने बताया कि बाबासाहेब का यह रुख उस समय के आंदोलन के लिए कितना अहम था।

बाबासाहेब का मुंबई से गहरा नाता था। उनका घर, जिसे ‘राजगृह’ के नाम से जाना जाता है, संयुक्त महाराष्ट्र समिति की बैठकों का केंद्र बन गया था। इन बैठकों में बड़े-बड़े नेता जैसे कॉमरेड डांगे, एस.एम. जोशी और आचार्य अत्रे शामिल होते थे। राज ठाकरे ने यह भी बताया कि उनके दादा प्रबोधनकार ठाकरे भी इन बैठकों का हिस्सा थे। इन मुलाकातों में बाबासाहेब ने न सिर्फ अपनी राय रखी, बल्कि अपने अनुयायियों को भी इस आंदोलन का समर्थन करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा था कि उनका अनुसूचित जाति महासंघ संयुक्त महाराष्ट्र समिति के साथ ‘जिब्राल्टर की चट्टान’ की तरह खड़ा रहेगा।

1948 में जब धर कमीशन के सामने मुंबई का मुद्दा उठा, तब बाबासाहेब ने मराठी भाषियों के लिए अलग राज्य की मांग का समर्थन किया। उन्होंने कमीशन को बताया कि मुंबई की पहचान मराठी भाषा और संस्कृति से जुड़ी है। कुछ लोगों ने तर्क दिया कि मुंबई में कई समुदाय रहते हैं, इसलिए इसे अलग रखना चाहिए। लेकिन बाबासाहेब ने जवाब दिया कि किसी शहर की पहचान उसकी मूल भाषा और संस्कृति से बनती है। उन्होंने कहा कि जैसे हिंदू और मुस्लिम अपनी पहचान नहीं खोते, वैसे ही मुंबई की मराठी पहचान को बदला नहीं जा सकता।

इस आंदोलन में बाबासाहेब का योगदान सिर्फ बयानों तक सीमित नहीं था। उन्होंने अपने विचारों और प्रभाव से लोगों को एकजुट किया। राज ठाकरे ने अपनी पोस्ट में लिखा कि बाबासाहेब का घर ‘राजगृह’ उस समय एक तरह का मुख्यालय बन गया था, जहां संयुक्त महाराष्ट्र की रणनीति बनती थी। यह सुनकर शायद आज के युवाओं को अचरज हो, लेकिन उस समय का माहौल ऐसा था कि हर बड़ा फैसला विचार-विमर्श के बाद ही लिया जाता था। बाबासाहेब ने न सिर्फ मुंबई को महाराष्ट्र में रखने की बात कही, बल्कि पूरे आंदोलन को मजबूती दी।

मुंबई की कहानी में बाबासाहेब का यह योगदान आज भी प्रेरणा देता है। उनके विचारों ने न सिर्फ एक शहर को महाराष्ट्र का हिस्सा बनाया, बल्कि एक ऐसी पहचान दी, जो आज भी इस राज्य की ताकत है। चाहे वह मराठी भाषा हो या संस्कृति, बाबासाहेब ने इसे बचाने के लिए जो किया, वह इतिहास के पन्नों में दर्ज है। संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन (United Maharashtra Movement) की सफलता में उनका योगदान हर महाराष्ट्रीयन के लिए गर्व की बात है।


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