महाराष्ट्र

First Aadhaar Card: इस महिला के नाम देश का पहला आधार फिर भी योजनाओं का फायदा नहीं, महज 3500 रुपये है कमाई

First Aadhaar Card: इस महिला के नाम देश का पहला आधार फिर भी योजनाओं का फायदा नहीं, महज 3500 रुपये है कमाई

First Aadhaar Card: भारत में जब भी आधार कार्ड की बात होती है, तो एक ऐसी महिला का नाम सामने आता है, जिसने इतिहास रचा। यह महिला हैं रंजना सोनवणे, जिन्हें देश का पहला आधार कार्ड मिला था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस उपलब्धि के बावजूद उनकी जिंदगी में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया? उनकी कहानी प्रेरणा और निराशा का एक अनोखा मिश्रण है, जो हमें व्यवस्था की खामियों और एक आम इंसान की जद्दोजहद को समझने का मौका देती है। इस लेख में हम रंजना की कहानी को गहराई से जानेंगे, जिसमें हम दो मुख्य कीफ्रेज़ पर ध्यान देंगे: पहला आधार कार्ड (First Aadhaar Card) और रंजना सोनवणे आधार (Ranjana Sonawane Aadhaar)।

महाराष्ट्र के नंदुरबार जिले के छोटे से गांव टेंभली में रहने वाली रंजना सोनवणे उस दिन सुर्खियों में आई थीं, जब 29 सितंबर 2010 को उन्हें भारत का पहला आधार कार्ड मिला। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी उनके साथ तस्वीरों में नजर आए थे। उस पल में रंजना को लगा था कि उनकी जिंदगी अब बदल जाएगी। उन्हें उम्मीद थी कि पहला आधार कार्ड (First Aadhaar Card) उनके लिए सरकारी योजनाओं का द्वार खोलेगा। लेकिन हकीकत कुछ और ही थी।

54 साल की रंजना का जीवन आज भी संघर्षों से भरा है। उनका परिवार सालाना केवल 40,000 रुपये कमाता है। उनके पति खिलौने बेचते हैं, और रंजना खुद मजदूरी करती हैं। उनके तीन बेटों में से एक के पास नौकरी है, जबकि दो अभी पढ़ाई कर रहे हैं। परिवार की मासिक आय महज 3,500 रुपये के आसपास है। इतनी कम आय में वे अपने परिवार का खर्च चलाती हैं और बच्चों की पढ़ाई का बोझ उठाती हैं। रंजना कहती हैं कि उनके बेटों को सरकारी नौकरी नहीं मिली, और अब वे उम्र के उस पड़ाव पर हैं, जहां दफ्तरों के चक्कर काटना मुश्किल हो रहा है। फिर भी, वे हिम्मत नहीं हारतीं।

रंजना की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र की लाडकी बहिन योजना, जो 21 से 65 वर्ष की महिलाओं को 1,500 रुपये मासिक सहायता देती है, रंजना तक नहीं पहुंच पाई। इसका कारण है कि उनका आधार कार्ड किसी अन्य व्यक्ति के बैंक खाते से जुड़ा हुआ है। यह तकनीकी खामी उनकी जिंदगी में एक बड़ा रोड़ा बन गई है। रंजना सोनवणे आधार (Ranjana Sonawane Aadhaar) से जुड़ी यह समस्या उनकी परेशानियों का एक बड़ा हिस्सा है।

रंजना ने कई बार तालुका कार्यालय और बैंकों के चक्कर काटे। इस साल वे सात बार तालुका कार्यालय जा चुकी हैं, लेकिन उनकी समस्या का समाधान नहीं हुआ। बैंक ने उन्हें मुंबई की शाखा में जाने की सलाह दी, लेकिन इतनी कम आय में मुंबई जाना उनके लिए आसान नहीं है। उनके बेटे उमेश ने भी अधिकारियों और बैंक से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन हर बार उन्हें निराशा ही मिली। अधिकारी बताते हैं कि रंजना का आधार एक निजी बैंक खाते से जुड़ा है, और संभवतः उनके दो मुख्य खाते जॉइंट होल्डर्स के साथ हैं। इस वजह से उनका आधार गलत खाते से लिंक हो गया। इसे ठीक करने के लिए शिकायत दर्ज करनी होगी, लेकिन रंजना और उनके परिवार के लिए यह प्रक्रिया जटिल और थकाऊ है।

रंजना की कहानी सिर्फ एक महिला की नहीं, बल्कि उन लाखों लोगों की है, जो सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित रह जाते हैं। आधार कार्ड, जो भारत में पहचान और योजनाओं का आधार बनने के लिए शुरू किया गया था, रंजना जैसे लोगों के लिए कई बार मुश्किलें खड़ी करता है। उनकी कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या तकनीक और नीतियां वास्तव में आम लोगों तक पहुंच पा रही हैं? रंजना आज भी अपने बेटों पर भरोसा करती हैं, जो मेहनती हैं और अपने परिवार का ख्याल रखते हैं। लेकिन वे कहती हैं कि अब वे सरकार के भरोसे नहीं रहतीं।

रंजना सोनवणे की जिंदगी एक प्रेरणा है। उन्होंने देश का पहला आधार कार्ड (First Aadhaar Card) हासिल किया, लेकिन उनकी कहानी हमें यह भी बताती है कि उपलब्धियां तभी मायने रखती हैं, जब वे जीवन को बेहतर बनाने में मदद करें। उनकी जद्दोजहद और हिम्मत हमें यह सिखाती है कि मुश्किलों के बावजूद हार नहीं माननी चाहिए। रंजना सोनवणे आधार (Ranjana Sonawane Aadhaar) की यह कहानी हर उस व्यक्ति तक पहुंचनी चाहिए, जो यह समझना चाहता है कि तकनीक और नीतियों के बीच आम इंसान की जिंदगी कैसे प्रभावित होती है।

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