महाराष्ट्र की राजनीति में इन दिनों बालासाहेब ठाकरे स्मारक (Balasaheb Thackeray Memorial) को लेकर गर्मा-गर्म बहस छिड़ी है। शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के नाम पर बनाए जा रहे स्मारक से अब उनके परिवार का नाम हटाने की मांग उठी है। इस विवाद के केंद्र में शिंदे की सेना (Shinde’s Sena) है, जिसने इसे एक नई सियासी जंग बना दिया है। अगर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने इस मांग को मान लिया, तो स्मारक से उद्धव ठाकरे परिवार का नाम पूरी तरह मिट जाएगा।
बालासाहेब ठाकरे स्मारक का इतिहास
शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे का 17 नवंबर 2012 को निधन हुआ था। उन्हें शिवाजी पार्क में अंतिम विदाई दी गई थी। बाद में इस स्थान पर एक भव्य स्मारक बनाने की योजना बनाई गई। स्मारक के लिए 400 करोड़ रुपये की परियोजना तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के कार्यकाल में स्वीकृत हुई। यहां उनके जीवन और कार्यों को प्रदर्शित किया जाएगा।
विवाद की शुरुआत
शुरुआती दौर में स्मारक के लिए एक समिति बनाई गई थी, जिसमें कोई राजनीतिक सदस्य नहीं था। बाद में 2016 में उद्धव ठाकरे को बालासाहेब ठाकरे मेमोरियल ट्रस्ट (Balasaheb Thackeray Memorial Trust) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। 2020 में मुख्यमंत्री बनने से पहले उद्धव ठाकरे ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया और आदित्य ठाकरे को अध्यक्ष बनाया गया।
Balasaheb Thackeray Memorial: शिंदे गुट का चक्रव्यूह
अब शिंदे गुट ने प्रस्ताव रखा है कि उद्धव ठाकरे और उनके परिवार को स्मारक के सभी पदों से हटाया जाए। इस प्रस्ताव को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। रामदास कदम जैसे वरिष्ठ नेताओं ने इस कदम का समर्थन किया है।
बीजेपी और शिंदे गुट की रणनीति
बीजेपी नेता प्रसाद लाड ने पहले भी मांग की थी कि सरकार इस स्मारक का अधिग्रहण करे। इस पर पहले भी बहस हो चुकी है, और अब शिंदे सेना इस पर दोबारा जोर दे रही है।