असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने एक ऐसा बयान दिया है, जिसने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। उन्होंने राज्य में मुसलमानों की बढ़ती आबादी पर गहरी चिंता जताई है। साथ ही, उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को लेकर एक ऐसी टिप्पणी की है, जो चर्चा का विषय बन गई है। आइए जानते हैं पूरा मामला।
हिमंत बिस्वा सरमा ने एक बड़ा खुलासा करते हुए बताया कि असम में मुसलमानों की आबादी अब 40 प्रतिशत तक पहुंच गई है। यह आंकड़ा चौंकाने वाला है। उन्होंने कहा कि अगर यही हालात रहे, तो वो दिन दूर नहीं जब असम में मुसलमान बहुसंख्यक हो जाएंगे और हिंदू अल्पसंख्यक बन जाएंगे।
2011 की जनगणना के मुताबिक, असम में मुसलमानों की संख्या 1.07 करोड़ थी, जो कुल आबादी का 34.22 प्रतिशत थी। वहीं, हिंदुओं की संख्या 1.92 करोड़ थी, जो कुल आबादी का 61.47 प्रतिशत थी। लेकिन अब स्थिति बदल रही है।
मुख्यमंत्री सरमा ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को लेकर एक दिलचस्प बयान दिया। उन्होंने कहा, “अगर राहुल गांधी जनसंख्या नियंत्रण के ब्रांड एंबेसडर बन जाएं, तो यह काम तेजी से हो सकता है। उन्हें इसके लिए शादी करने और 12 बच्चे पैदा करने की जरूरत नहीं है।”
उन्होंने आगे कहा, “अगर आप किसी मुसलिम गांव में जाएं और पूछें कि वे किसकी बात सुनेंगे – हिमंत बिस्वा सरमा की या राहुल गांधी की, तो लोग राहुल गांधी की बात सुनेंगे।” यह बयान राहुल गांधी के मुस्लिम समुदाय में प्रभाव को दर्शाता है।
सरमा ने मुस्लिम राजनीतिक नेताओं पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “मुस्लिम राजनीतिक नेताओं के खुद दो बच्चे होते हैं, लेकिन वे कभी गांव वालों को दो बच्चों तक सीमित रहने की सलाह नहीं देते।” उन्होंने यह भी कहा कि अगर पहले के मुख्यमंत्रियों ने धर्मनिरपेक्षता की चिंता छोड़कर जनसंख्या विस्फोट के बारे में बात की होती, तो आज राज्य की स्थिति बेहतर होती।
सरमा ने इस समस्या के समाधान के लिए कुछ सुझाव भी दिए। उन्होंने कहा कि अगर सरकार मुस्लिम लड़कियों को शिक्षित करने पर ध्यान दे और बाल विवाह के खिलाफ सख्त कदम उठाए, तो जनसंख्या वृद्धि को रोका जा सकता है। उन्होंने इसे एक बड़ी समस्या बताया, जिसे सही दिशा में कदम उठाकर ही हल किया जा सकता है।
हिमंत बिस्वा सरमा के इस बयान ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या असम में वाकई जनसंख्या का संतुलन बिगड़ रहा है? क्या राहुल गांधी जैसे नेता इस मुद्दे पर कोई भूमिका निभा सकते हैं? और सबसे बड़ा सवाल, क्या सरकार इस चुनौती से निपटने के लिए कोई ठोस कदम उठाएगी?
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