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Bihar Elections 2025: बिहार में भाजपा की मजबूरी, नीतीश कुमार क्यों हैं जरूरी?

Bihar Elections 2025: बिहार में भाजपा की मजबूरी, नीतीश कुमार क्यों हैं जरूरी?

Bihar Elections 2025: हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में शानदार प्रदर्शन के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अब बिहार की चुनावी तैयारियां शुरू कर दी हैं। 2025 के विधानसभा चुनावों में भाजपा जनता दल (यूनाइटेड) यानी जद(यू) के साथ मिलकर चुनाव लड़ने जा रही है। दिलचस्प बात यह है कि भाजपा ने नीतीश कुमार को गठबंधन का नेता मान लिया है और यह तय कर लिया है कि अगर एनडीए सरकार बनती है तो नीतीश ही मुख्यमंत्री होंगे।

बिहार महाराष्ट्र से अलग क्यों है?

भाजपा ने महाराष्ट्र में शिवसेना (शिंदे गुट) और एनसीपी (अजित पवार गुट) के साथ मिलकर सरकार बनाई, लेकिन वहां भाजपा बड़े भाई की भूमिका में है। बिहार में हालात बिल्कुल अलग हैं। भाजपा यहां भी सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ेगी, लेकिन नीतीश कुमार को ही सीएम पद देने का मन बना चुकी है।

इसके पीछे कई गहरे राजनीतिक और सामाजिक कारण हैं:

  1. जातीय समीकरणों की मजबूरी
    बिहार की राजनीति जातीय संतुलन पर निर्भर करती है। भाजपा की पारंपरिक ताकत सवर्ण मतदाता हैं, जबकि ओबीसी और अति-पिछड़ा वर्ग (EBC) में पकड़ बनाने के लिए उसे जद(यू) की जरूरत है। नीतीश कुमार की मजबूत पकड़ कुर्मी और अति-पिछड़ा वोट बैंक पर है, जो भाजपा को बिहार में अपने पांव जमाने में मदद करता है।

  2. महागठबंधन का खतरा
    अगर भाजपा अकेले चुनाव लड़ती है, तो राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस एकजुट होकर एनडीए को टक्कर दे सकते हैं। महागठबंधन (राजद+कांग्रेस+लेफ्ट) अभी भी बिहार में एक मजबूत विकल्प है। इसलिए भाजपा को जद(यू) के साथ बने रहना जरूरी है।

  3. नीतीश कुमार की छवि
    बिहार में नीतीश कुमार की ‘सुशासन बाबू’ की छवि अब भी प्रभावी है। उन्होंने शराबबंदी, सड़क निर्माण, शिक्षा सुधार और कानून व्यवस्था को लेकर कुछ ठोस काम किए हैं। भाजपा उनके इस ब्रांड का फायदा उठाना चाहती है।

  4. मुस्लिम और महिला वोटर्स पर पकड़
    नीतीश कुमार ने पिछले कुछ वर्षों में मुस्लिम और महिला वोटर्स के बीच अपनी अच्छी पकड़ बनाई है। भाजपा को इन दोनों वर्गों में मजबूत उपस्थिति की जरूरत है, जिसके लिए नीतीश का चेहरा जरूरी है।

भाजपा ने संकेत दिए, नीतीश ही रहेंगे नेता

दिल्ली के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने जद(यू) और लोजपा (रामविलास गुट) को दो सीटें दीं। यह इस बात का साफ संकेत था कि भाजपा बिहार में अपने गठबंधन सहयोगियों को पूरी तरह साथ रखेगी। दिल्ली चुनावों के बाद बिहार के एनडीए सांसदों ने पीएम मोदी से मुलाकात कर गठबंधन को और मजबूत करने की रणनीति बनाई।

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने साफ कहा कि नीतीश कुमार को हटाने का कोई सवाल ही नहीं है। भले ही भाजपा ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़े और ज्यादा विधायक जीते, लेकिन सीएम वही बनेंगे।

भाजपा को ‘छोटे भाई’ की भूमिका निभानी पड़ेगी

महाराष्ट्र में भाजपा अब ‘बड़े भाई’ की भूमिका में है, लेकिन बिहार में यह संभव नहीं है। यहां भाजपा को गठबंधन में संतुलन बनाए रखने के लिए ‘छोटे भाई’ की भूमिका निभानी पड़ेगी।

भाजपा के रणनीतिकार यह अच्छी तरह समझते हैं कि अगर वे नीतीश को किनारे करने की कोशिश करेंगे, तो बिहार में एनडीए कमजोर हो सकता है। इसलिए पार्टी ने फिलहाल धैर्य रखने और धीरे-धीरे अपनी स्थिति मजबूत करने की रणनीति अपनाई है।

क्या भविष्य में समीकरण बदल सकते हैं?

भाजपा धीरे-धीरे बिहार में अपनी पकड़ मजबूत कर रही है। 2020 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने जद(यू) से ज्यादा सीटें जीती थीं, लेकिन फिर भी नीतीश को सीएम बनाना पड़ा।

अगर 2025 के चुनावों में भी भाजपा अधिक सीटें जीतती है, तो भविष्य में वह ‘बड़े भाई’ की भूमिका निभाने की कोशिश कर सकती है। लेकिन अभी के लिए, नीतीश कुमार ही भाजपा के लिए जरूरी हैं।

Bihar Elections 2025: भाजपा और जद(यू) का रिश्ता अभी बरकरार रहेगा

बिहार में भाजपा और जद(यू) का गठबंधन राजनीतिक मजबूरी भी है और रणनीति भी। भाजपा फिलहाल नीतीश कुमार के नेतृत्व को स्वीकार कर रही है, लेकिन आने वाले वर्षों में समीकरण बदल सकते हैं।

भाजपा के लिए यह गठबंधन बिहार में सत्ता बनाए रखने का सबसे मजबूत तरीका है, और यही कारण है कि पार्टी ने साफ कर दिया है कि नीतीश कुमार ही 2025 के चुनावों में मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे।


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