बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुणे में शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने के लिए दो संस्थाओं – जागृति फाउंडेशन और संजय मोदक एजुकेशन सोसाइटी – को दी गई इजाज़त को रद्द करने के राज्य सरकार के फैसले को बरकरार रखा है।
पुणे को ‘पूर्व का ऑक्सफोर्ड’ कहा जाता है और यह देश-विदेश के छात्रों के लिए एक आकर्षण का केंद्र रहा है। अच्छी शिक्षा सबको मिले, इसके लिए राज्य पर संवैधानिक ज़िम्मेदारी है। बदलते समय में शिक्षा के क्षेत्र में व्यावसायिकता बढ़ी है।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुणे में शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना के लिए दो संस्थाओं – जागृति फाउंडेशन और संजय मोदक एजुकेशन सोसाइटी – को दी गई अनुमति को रद्द करने के राज्य सरकार के फैसले को बरकरार रखा है। कोर्ट का कहना है कि शैक्षणिक नीति के मामलों में कोर्ट विशेषज्ञ नहीं होता है और राज्य सरकार ही बेहतर संस्थान के चयन के लिए सबसे उपयुक्त प्राधिकरण है।
सरकार ने इन संस्थानों को अनुमति देने से इनकार करते हुए कहा था कि उन्होंने पहले कोई शैक्षणिक संस्थान नहीं चलाया है और उनकी वित्तीय स्थिति भी उन संस्थानों की तुलना में कमजोर है जिन्हें अनुमति दी गई थी। कोर्ट ने कहा कि किसी भी शैक्षणिक संस्थान की स्थापना के लिए संस्थान चलाने का अनुभव बहुत अहम होता है।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि किसी भी शिक्षण संस्थान को चलाने के लिए, भूमि का स्वरूप, वित्तीय उपलब्धता, बुनियादी ढांचा, आदि, निश्चित रूप से बहुत महत्वपूर्ण कारक हैं जिन पर विचार किया जाना चाहिए। हाई कोर्ट फैसला लेने वाले प्राधिकरण द्वारा प्राकृतिक न्याय के नियमों के उल्लंघन या सत्ता के दुरुपयोग की स्थिति में ही दखल दे सकता है।
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बॉम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले से स्पष्ट है कि कोर्ट, राज्य सरकार द्वारा शैक्षणिक नीति से संबंधित मामलों में लिए गए फैसलों में ज़्यादा हस्तक्षेप नहीं करता है। सरकार के पास इस संबंध में व्यापक अधिकार हैं।