हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश दिया, जिसमें एक व्यक्ति को तत्काल रिहा करने के निर्देश दिए गए हैं। यह व्यक्ति अपनी सजा पूरी करने के बावजूद चार साल से ज्यादा समय से जेल में बंद था क्योंकि वह 2.65 लाख रुपये का भारी जुर्माना नहीं भर सका। अदालत ने इसे “न्याय का उपहास” करार दिया और उसकी रिहाई के आदेश दिए।
कोल्हापुर के सिकंदर गोविंद काले, जिन्हें 2017 में 14 आपराधिक मामलों में गिरफ्तार किया गया था, इन मामलों में घर में घुसने, चोरी और शरारत के आरोप थे। दोषी ठहराए जाने के बाद, काले को दो साल की जेल की सजा सुनाई गई थी और साथ ही 2.65 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया था। जुर्माना न चुकाने की स्थिति में, उसे नौ साल की डिफ़ॉल्ट सजा भुगतनी पड़ती।
काले के वकीलों ने अदालत में यह दलील दी कि उनके मुवक्किल ने अपनी पूरी सजा काट ली है, लेकिन गरीबी के कारण वह जुर्माने की राशि नहीं भर सका। वकीलों ने यह भी तर्क दिया कि काले को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और सम्मान के अधिकार से वंचित किया गया है। उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि जुर्माना न चुकाने की सजा को कम किया जाए और काले को जेल से रिहा किया जाए।
न्यायमूर्ति भारती एच डांगरे और मंजूषा ए देशपांडे की खंडपीठ ने काले की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि यदि काले को पूरी डिफ़ॉल्ट सजा भुगतने का निर्देश दिया जाता है, तो उसे 9 साल की अतिरिक्त अवधि के लिए जेल में रहना होगा, जो न्याय का उपहास होगा। पीठ ने कहा कि काले समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से ताल्लुक रखता है और गरीबी के कारण वह जुर्माने की राशि का इंतजाम नहीं कर पाया है।
अदालत ने कहा, “इसमें कोई विवाद नहीं है कि याचिकाकर्ता समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग से ताल्लुक रखता है और यही खास वजह है कि वह पिछले 4 सालों से जेल में है क्योंकि वह जुर्माने की राशि का इंतजाम नहीं कर पाया है।” अदालत ने कुछ मामलों में लगाए गए जुर्माने को भी कम कर दिया और कहा कि काले द्वारा अब तक काटी गई सजा को जुर्माना न चुकाने के लिए डिफ़ॉल्ट सजा माना जाएगा।
पीठ ने यह भी कहा कि न्याय के साथ-साथ उदारता नैतिक गुणों की ‘जुड़वां चोटियों’ में से एक है और ‘न्याय कोई कृत्रिम गुण नहीं है’, बल्कि इसमें उदारता अनिवार्य रूप से शामिल है। इस आदेश के साथ, अदालत ने काले की तत्काल रिहाई का निर्देश दिया, जिससे एक व्यक्ति को उसके अधिकारों की रक्षा करते हुए न्याय मिला।
ये भी पढ़ें: अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट ने किन शर्तों के साथ दी जमानत, जानें आदेश की अहम बातें