दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शराब नीति घोटाला मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अंतरिम जमानत दे दी है। कोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिका को बड़ी बेंच के पास भेज दिया है। हालांकि, केजरीवाल अभी भी सीबीआई मामले में न्यायिक हिरासत में हैं, इसलिए फिलहाल वह जेल से रिहा नहीं हो पाएंगे।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि केजरीवाल 90 दिनों से ज्यादा समय तक जेल में रहे हैं। वे एक निर्वाचित नेता हैं और उनके पास यह विकल्प है कि वे इस पद पर बने रहना चाहते हैं या नहीं।
इस फैसले से केजरीवाल को भले ही राहत मिली हो, लेकिन रिहाई नहीं मिल सकी। सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत मिलने के बाद आम आदमी पार्टी ने बीजेपी पर तीखा हमला बोला। दिल्ली सरकार में मंत्री आतिशी ने कहा कि केजरीवाल की रिहाई रोकने के लिए साज़िश के तहत उन्हें सीबीआई केस में गिरफ्तार किया गया। वहीं, बीजेपी सांसद बांसुरी स्वराज ने कहा कि अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि अरविंद केजरीवाल के खिलाफ जांच के लिए पर्याप्त सबूत हैं, इसलिए फैसला बड़ी बेंच को भेजा गया है और अंतरिम जमानत दी गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कुछ शर्तें भी रखी हैं:
- अरविंद केजरीवाल को 50,000 रुपये का जमानत बॉन्ड देना होगा।
- वे मुख्यमंत्री कार्यालय और दिल्ली सचिवालय का दौरा नहीं करेंगे।
- वे आधिकारिक फाइलों पर तब तक हस्ताक्षर नहीं करेंगे, जब तक यह आवश्यक न हो और दिल्ली के उपराज्यपाल की मंजूरी प्राप्त न हो।
- वे वर्तमान मामले में अपनी भूमिका के संबंध में कोई टिप्पणी नहीं करेंगे।
- वे किसी भी गवाह के साथ बातचीत नहीं करेंगे और मामले से जुड़ी किसी भी आधिकारिक फाइल तक उनकी पहुंच नहीं होगी।
- अंतरिम जमानत को बड़ी बेंच द्वारा बढ़ाया या वापस लिया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि अरविंद केजरीवाल एक निर्वाचित नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं, जिसका महत्व और प्रभाव है। कोर्ट ने यह भी कहा कि हम आरोपों का हवाला देते हैं, लेकिन कोई निर्देश नहीं देते क्योंकि हमें संदेह है कि क्या अदालत किसी निर्वाचित नेता को पद छोड़ने या मुख्यमंत्री या मंत्री के रूप में काम नहीं करने का निर्देश दे सकती है। इस पर फैसला लेना अरविंद केजरीवाल पर छोड़ते हैं।
यदि उचित समझा जाए तो बड़ी पीठ प्रश्न बना सकती है और ऐसे मामलों में अदालत द्वारा लगाई जा सकने वाली शर्तों पर निर्णय ले सकती है। रजिस्ट्री को निर्देश दिया गया है कि वह उपरोक्त प्रश्नों पर विचार के लिए एक उचित पीठ और यदि उपयुक्त हो तो एक संविधान पीठ के गठन के लिए मामले को भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखे।
ये भी पढ़ें: “नाश्ता कर लो, कभी भी गिरफ्तारी…” इमरजेंसी के वे किस्से जो आज भी जेहन में ताजा हैं