High Court Judge Impeachment: भारतीय न्यायपालिका में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का एक खास स्थान है। यह संस्था सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति और तबादले जैसे मामलों में अहम भूमिका निभाती है। हाल ही में, इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव के बयानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा उठाए गए कदम ने इस सवाल को जन्म दिया कि क्या कॉलेजियम हाईकोर्ट जज को इस्तीफा देने का आदेश दे सकता है?
जस्टिस शेखर यादव और विवाद की शुरुआत
जस्टिस शेखर कुमार यादव ने विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में भाग लेते हुए यूनिफॉर्म सिविल कोड और अन्य संवेदनशील मुद्दों पर बयान दिए थे। उनके बयानों का एक हिस्सा सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसमें उन्होंने कहा था कि “भारत अब बहुसंख्यकों की मर्जी से चलेगा।” इसके बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उन्हें बैठक के लिए बुलाया और उनके बयानों पर स्पष्टीकरण मांगा।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम क्या है?
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम भारत के चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जजों का एक समूह है। यह ग्रुप सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति, तबादले और प्रमोशन से जुड़े फैसले करता है।
- संवैधानिक स्थिति: कॉलेजियम की कोई संवैधानिक या वैधानिक मान्यता नहीं है। इसे सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से परंपरागत रूप में स्थापित किया गया है।
- मुख्य कार्य: जजों की नियुक्ति और तबादले पर राष्ट्रपति को सलाह देना।
क्या कॉलेजियम किसी जज को इस्तीफा देने को कह सकता है?
कॉलेजियम की शक्तियां अनुशंसा देने तक ही सीमित हैं। जस्टिस यादव के मामले में भी यह सवाल उठ रहा है कि क्या कॉलेजियम उन्हें नैतिक आधार पर इस्तीफा देने को कह सकता है।
कानूनी स्थिति:
- संविधान के अनुच्छेद 124 और 217:
- सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों को हटाने की प्रक्रिया संविधान में स्पष्ट रूप से दी गई है।
- किसी जज को केवल महाअभियोग (Impeachment) के जरिए हटाया जा सकता है। यह प्रक्रिया संसद में पूरी होती है।
- इस्तीफे का सुझाव:
- कॉलेजियम नैतिक आधार पर किसी जज से इस्तीफा देने का अनुरोध कर सकता है, लेकिन यह बाध्यकारी नहीं होता।
महाअभियोग की प्रक्रिया:
जज को हटाने की प्रक्रिया संविधान के तहत तय है। संसद में महाअभियोग प्रस्ताव पास करना होता है, जिसमें जज के आचरण और कार्यप्रणाली की जांच की जाती है।
कॉलेजियम की सीमाएं
कॉलेजियम के पास जजों को हटाने की शक्ति नहीं है। यह केवल निम्न कार्य कर सकता है:
- जज के आचरण पर टिप्पणी करना।
- नैतिकता के आधार पर माफी मांगने या इस्तीफा देने का सुझाव देना।
- उनके बर्ताव को लेकर दिशा-निर्देश जारी करना।
क्या कॉलेजियम संविधान से ऊपर जा सकता है?
कॉलेजियम की कार्यप्रणाली और सीमाओं को लेकर अक्सर बहस होती है। चूंकि कॉलेजियम के निर्णय राष्ट्रपति की सहमति पर निर्भर करते हैं, यह अपने अधिकारों का अतिक्रमण नहीं कर सकता।
जस्टिस यादव पर कॉलेजियम का रुख
- स्पष्टीकरण की मांग:सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस यादव को अपने बयानों पर स्पष्टीकरण देने के लिए बुलाया। यह कॉलेजियम की जिम्मेदारी है कि वह न्यायपालिका की निष्पक्षता और गरिमा बनाए रखे।
- इस्तीफे का अनुरोध:नैतिक आधार पर कॉलेजियम जस्टिस यादव से इस्तीफा देने का अनुरोध कर सकता है, लेकिन इसे लागू नहीं कर सकता।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के पास जजों को हटाने या इस्तीफा देने के लिए बाध्य करने का अधिकार नहीं है। यह केवल नैतिकता के आधार पर सुझाव दे सकता है। जस्टिस शेखर यादव का मामला एक महत्वपूर्ण उदाहरण है, जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता और उसकी सीमाओं के बीच संतुलन की आवश्यकता को दर्शाता है।
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