सुनो भाई, महाराष्ट्र के सतारा ज़िले की बात है – मान तालुका के विजयनगर ज़िला परिषद स्कूल में एक गजब का प्रयोग हो रहा है! मराठी की प्राचीन ‘मोदी’ लिपि को ज़िंदा करने की कोशिश! सुना है ये नाम ‘मोड़ने’ से आया है, क्योंकि लिखते वक्त अक्षरों को मरोड़ा जाता है। कुछ लोग तो कहते हैं कि ये तेज़ी से लिखने के लिए बनाई गई थी, जैसे शॉर्टहैंड! 1950 के दशक तक तो आम चलन में थी।
फिर क्या हुआ? वक्त बदला, और ये मोदी लिपि को ‘बालबोध देवनागरी’ ने पीछे छोड़ दिया। देवनागरी ज़्यादा साफ़ है, छपाई के लिए आसान! सतारा स्कूल के प्रिंसिपल बालाजी जाधव को पिछले साल मराठा आरक्षण पर कुछ पढ़ते समय इस मोदी लिपि के बारे में पता चला। तब सोचा, आजकल कितने लोग होंगे जो इतिहास के ये पुराने दस्तावेज़ पढ़ भी पाएं?
ये विजयनगर गांव तो सूखे से मशहूर इलाका है, मगर स्कूल वाले नई-नई चीज़ें करवाते हैं। जाधव ने ख़ुद ऑनलाइन वीडियो देखकर मोदी लिपि सीखी, फिर बच्चों को भी सिखाने की ठानी! पहले माँ-बाप को समझा-बुझाकर हामी भरवाई, फिर शुरू हुआ काम। शुरुआत में दिन के सिर्फ़ 3-4 अक्षर! जब 10 अक्षर हुए तो छोटे-मोटे शब्द बनाने की मश्क शुरू!
जाधव बताते हैं, “एक महीने में ही सब अक्षर हो गए, पर असली झमेला तो जुड़वा अक्षर लिखने में आया!”
अब कक्षा 2 से 4 तक के 35 बच्चे मोदी लिपि में छोटे वाक्य पढ़-लिख लेते हैं! चौथी कक्षा के स्मित जाधव कहते हैं, “मराठी अक्षर तो हम पहले ही सीख गए थे, अब उन्हीं को नए अंदाज़ में लिख रहे हैं। टीचर बताते हैं कि इतिहास के कई कागज़-पत्र इसी लिपि में हैं!”
फिर एक मज़ेदार बात! एक साल पहले इसी स्कूल के बच्चों ने जापानी भाषा सीखनी शुरू की थी! पुणे की जापानी टीचर्स एसोसिएशन की मदद से जापानी टेस्ट भी दे रहे हैं!