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Decrease in poverty: क्या भारत में गरीबी वाकई घट रही है या ये सिर्फ आंकड़ों का खेल है?

Decrease in poverty: क्या भारत में गरीबी वाकई घट रही है या ये सिर्फ आंकड़ों का खेल है?

भारत में गरीबी और उसकी असमानता पर हमेशा से बहस होती रही है। लेकिन हाल ही में, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) की एक रिपोर्ट ने दावा किया है कि भारत में गरीबी में गिरावट (Decrease in poverty) देखी जा रही है। यह सवाल उठता है कि क्या यह दावा जमीनी सच्चाई से मेल खाता है, या यह महज आंकड़ों की बाजीगरी (Numbers game) है?


SBI की रिपोर्ट के दावे और हकीकत

2023-24 में किए गए विश्लेषण के मुताबिक, भारत में ग्रामीण गरीबी 4.86% और शहरी गरीबी 4.09% तक घट गई है। यह आंकड़े 2011-12 के मुकाबले काफी कम हैं, जब ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी 25.7% और शहरी क्षेत्रों में 13.7% थी। रिपोर्ट के अनुसार, गांवों और शहरों के बीच आमदनी का अंतर घट रहा है।

शहरों और गांवों में सड़कों, पुलों, और अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार के चलते लोग बेहतर अवसरों तक पहुंच पा रहे हैं। लेकिन क्या यही असल कारण है, या गरीबी मापने के पैमाने ही बदल दिए गए हैं?


गरीबी रेखा का बदलता मापदंड

भारत में गरीबी मापने के लिए नई गरीबी रेखा तय की गई है। 2011-12 में जहां ग्रामीण इलाकों में गरीबी रेखा 816 रुपये प्रति माह थी, वह अब बढ़ाकर 1632 रुपये कर दी गई है। शहरी क्षेत्रों के लिए यह सीमा 1000 रुपये से बढ़ाकर 1944 रुपये कर दी गई है। सरकार का कहना है कि यह बदलाव महंगाई और दूसरे आर्थिक कारकों को ध्यान में रखते हुए किया गया है।

हालांकि, आलोचक कहते हैं कि गरीबी रेखा बढ़ाने से गरीबी के आंकड़े तो बेहतर दिख सकते हैं, लेकिन यह असल में गरीबों की स्थिति को नहीं दर्शाते।


क्या सरकारी योजनाओं का असर दिख रहा है?

सरकार ने ग्रामीण और शहरी गरीबी कम करने के लिए कई योजनाएं चलाई हैं। इनमें पीएम-किसान योजना, मनरेगा, और जन धन योजना जैसे प्रयास शामिल हैं। इन योजनाओं के माध्यम से गरीब तबकों तक सीधे आर्थिक मदद पहुंचाने की कोशिश की गई है।

हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि भ्रष्टाचार और संसाधनों के दुरुपयोग के चलते इन योजनाओं का प्रभाव पूरी तरह से गरीबों तक नहीं पहुंचता।


Decrease in poverty: क्या यह सिर्फ आंकड़ों का खेल है?

कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि गरीबी घटने के ये दावे आंकड़ों की बाजीगरी हो सकते हैं। एक उदाहरण के तौर पर, अगर गरीबी रेखा को कम कर दिया जाए या मापने के तरीके को बदला जाए, तो स्वाभाविक रूप से गरीबों की संख्या कम दिखाई देगी।

एसबीआई की रिपोर्ट बताती है कि ग्रामीण और शहरी गरीबों के खर्च में अंतर कम हुआ है। लेकिन यह ध्यान रखना जरूरी है कि यह बदलाव महंगाई दर, रोजगार के अवसर, और अस्थायी सरकारी योजनाओं के प्रभाव से हो सकता है।


असलियत क्या है?

भारत में गरीबी में गिरावट (Decrease in poverty) पर दावा और वास्तविकता के बीच गहरा अंतर हो सकता है। सरकारी प्रयास और योजनाएं बेशक एक सकारात्मक दिशा में काम कर रही हैं, लेकिन गरीबी के मापदंड और आंकड़ों के खेल पर सवाल खड़े करना जरूरी है।

सामाजिक और आर्थिक असमानता को खत्म करने के लिए सतत प्रयास और जमीनी स्तर पर सुधार की आवश्यकता है। अगर ये दावे पूरी तरह सही हैं, तो यह भारत के विकास के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन अगर यह सिर्फ आंकड़ों की बाजीगरी (Numbers game) है, तो हमें असल सच्चाई को समझने की जरूरत है।


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