ऑनटीवी स्पेशल

Hindu Muslim Marriage: हिंदू महिला के मुस्लिम शख्स से शादी का मतलब इस्लाम में कन्वर्ट होना नहीं, दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला

Hindu Muslim Marriage: हिंदू महिला के मुस्लिम शख्स से शादी का मतलब इस्लाम में कन्वर्ट होना नहीं, दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला

Hindu Muslim Marriage: दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि किसी हिंदू महिला के मुस्लिम पुरुष से शादी करने का मतलब यह नहीं है कि महिला का धर्म अपने आप बदलकर इस्लाम हो गया। इस फैसले में स्पष्ट किया गया कि शादी का धर्मांतरण से कोई सीधा संबंध नहीं है और ऐसा दावा केवल ठोस प्रमाणों के आधार पर किया जा सकता है।

यह मामला 2007 में दायर किया गया था, जिसमें संपत्ति के बंटवारे का विवाद था। एक व्यक्ति की पहली पत्नी की बड़ी बेटी ने यह मुकदमा पिता और उसकी दूसरी पत्नी के बेटों के खिलाफ किया था। बड़ी बेटी ने दावा किया कि वह अपने पिता द्वारा बनाए गए हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) की संपत्तियों में बराबर की हिस्सेदार है।


Hindu Muslim Marriage: क्या था विवाद?

यह मामला संपत्ति के अधिकारों से जुड़ा था। 2005 में हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम के लागू होने के बाद बेटियों को भी संपत्ति में बराबर का अधिकार दिया गया। बड़ी बेटी ने अपनी सौतेली मां और सौतेले भाइयों के खिलाफ 1/5 हिस्से की मांग की।

हालांकि, बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि बड़ी बेटी ने हिंदू धर्म का पालन करना छोड़ दिया है क्योंकि उसने यूनाइटेड किंगडम में एक पाकिस्तानी मुस्लिम व्यक्ति से शादी कर ली थी। बचाव पक्ष का दावा था कि शादी के बाद महिला ने इस्लाम अपना लिया है और इस कारण वह संपत्ति में हिस्सेदारी की हकदार नहीं है।


अदालत का दृष्टिकोण

जस्टिस जसमीत सिंह ने इस मामले में कहा कि यह बचाव पक्ष की जिम्मेदारी थी कि वह साबित करे कि महिला ने हिंदू धर्म छोड़कर इस्लाम अपना लिया है। अदालत ने पाया कि ऐसा कोई ठोस प्रमाण नहीं दिया गया, जिससे यह साबित हो सके कि महिला ने धर्मांतरण की प्रक्रिया से गुजरकर इस्लाम धर्म स्वीकार किया है।

महिला ने अदालत में हलफनामा दायर करके साफ किया कि उसने शादी के बाद भी अपना धर्म नहीं बदला और वह हिंदू धर्म का पालन करती रही। अदालत ने इसे स्वीकार करते हुए कहा कि किसी मुस्लिम व्यक्ति से विवाह करने मात्र से हिंदू धर्म का स्वत: परित्याग नहीं होता।


संपत्ति का बंटवारा

अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि बड़ी बेटी हिंदू धर्म का पालन करती है, इसलिए वह HUF की संपत्तियों में हिस्सेदारी की पूरी हकदार है। अदालत ने आदेश दिया कि पब्लिक प्रोविडेंट फंड (PPF) में जमा धनराशि और अन्य संपत्तियों में से प्रत्येक बेटी को 1/4 हिस्सा दिया जाए।

सौतेले बेटों ने हलफनामा देकर अपनी हिस्सेदारी छोड़ने की बात कही, जिसे अदालत ने एक सकारात्मक कदम के रूप में देखा। उन्होंने अपनी सौतेली बहनों के पक्ष में संपत्तियों पर अपने अधिकार छोड़ दिए।


क्या कहता है यह फैसला?

दिल्ली हाई कोर्ट के इस फैसले ने साफ किया कि शादी का धर्मांतरण से कोई सीधा संबंध नहीं है। किसी महिला के धर्म का निर्धारण केवल इस आधार पर नहीं किया जा सकता कि उसने किससे शादी की है। जब तक यह साबित न हो कि महिला ने विधिवत रूप से धर्मांतरण की प्रक्रिया पूरी की है, उसके धर्म में कोई बदलाव नहीं माना जाएगा।

यह फैसला उन महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करता है, जिन्हें शादी के आधार पर धर्म बदलने के लिए मजबूर किया जाता है या संपत्ति में उनके अधिकार को खारिज करने की कोशिश की जाती है।


दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला स्पष्ट करता है कि धर्मांतरण एक व्यक्तिगत और कानूनी प्रक्रिया है, जो केवल प्रमाणित दावों और स्पष्ट सबूतों के आधार पर मान्य होती है। किसी महिला के शादी करने से उसके धर्म पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह निर्णय न केवल संपत्ति के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि महिलाओं को उनकी धार्मिक पहचान बनाए रखने की आज़ादी भी देता है।


#HinduMuslimMarriage #DelhiHighCourt #ReligiousFreedom #MarriageRights #LegalDecision

ये भी पढ़ें: महाकुंभ: एक्ट्रेस ममता कुलकर्णी बनीं महामंडलेश्वर, रखा गया ये नया नाम

You may also like