Development of the baby in the womb: क्या आपने कभी सोचा है कि मां के पेट में बच्चा कैसे बड़ा होता है? क्या वो कुछ महसूस करता है? वृंदावन के संत स्वामी प्रेमानंद जी महाराज ने इस विषय पर कुछ ऐसी बातें बताई हैं जो आपको हैरान कर देंगी। आइए जानते हैं गर्भ में बच्चे का विकास (Development of the baby in the womb) कैसे होता है और इस यात्रा में क्या-क्या होता है।
मां के पेट में बच्चे की शुरुआत: अंडे से इंसान तक
स्वामी प्रेमानंद जी बताते हैं कि जब एक जीव को मनुष्य का शरीर मिलता है तो उसकी यात्रा बड़ी दिलचस्प होती है। पहले वो बारिश के पानी के साथ अन्न में पहुंचता है। फिर वो अन्न के जरिए मां-बाप के पेट में जाता है। वहां मां का अंडा और पिता का वीर्य मिलकर बच्चे की रचना शुरू करते हैं।
पहले पांच दिन में ये बस एक छोटा सा बुलबुला होता है। दस दिन बाद ये बेर जैसा दिखने लगता है। धीरे-धीरे इसमें मांसपेशियां बनने लगती हैं। एक महीने में ये अंडे जैसा हो जाता है और उसका सिर बनना शुरू हो जाता है।
दो महीने में हाथ-पैर बनने लगते हैं। तीन महीने में नाखून, बाल और त्वचा बन जाती है। इसी समय ये भी पता चल जाता है कि बच्चा लड़का है या लड़की। चार महीने में शरीर में खून बहना शुरू हो जाता है।
बच्चे की चेतना: दर्द और ज्ञान का सफर
स्वामी प्रेमानंद जी कहते हैं कि पांचवें महीने में बच्चे को होश आने लगता है। उसे भूख और प्यास लगने लगती है। छठे महीने में उसे बहुत तकलीफ होती है। वो मां के पेट में दाहिनी तरफ रहता है जहां गंदगी भी होती है। जब मां तीखा या खट्टा खाती है तो बच्चे को जलन होती है।
सातवें महीने में बच्चे को अपने पिछले कई जन्मों की याद आने लगती है। वो बहुत परेशान होता है। आठवें और नौवें महीने में वो भगवान से प्रार्थना करता है कि उसे बाहर निकाल लें।
जन्म का चमत्कार: नई शुरुआत, पुरानी यादें
जब बच्चा पैदा होता है तो उसका सारा ज्ञान गायब हो जाता है। वो रोने लगता है क्योंकि उसे समझ नहीं आता कि वो कहां है। फिर उसकी नई जिंदगी शुरू हो जाती है।
स्वामी प्रेमानंद जी कहते हैं कि हम सभी इसी तरह से इस दुनिया में आए हैं। उनका कहना है कि हमें इस चक्र से बाहर निकलने के लिए भगवान का नाम जपना चाहिए। इससे हमारी बुद्धि शुद्ध होगी और हमें मुक्ति मिलेगी।
गर्भ में बच्चे का विकास (Development of the baby in the womb) एक अद्भुत प्रक्रिया है। स्वामी प्रेमानंद जी की ये बातें हमें सोचने पर मजबूर करती हैं कि जीवन कितना अनमोल है। हर बच्चा एक चमत्कार है और उसकी यात्रा बहुत खास होती है।
माँ बनने का जादू: एक नई जिंदगी का आगाज
गर्भावस्था के नौ महीने मां और बच्चे दोनों के लिए बहुत खास होते हैं। इस दौरान मां को अपने खाने-पीने का ध्यान रखना चाहिए। जो कुछ भी वो खाती है उसका असर बच्चे पर पड़ता है। मां को हमेशा खुश रहना चाहिए क्योंकि उसकी भावनाएं भी बच्चे तक पहुंचती हैं।
डॉक्टर कहते हैं कि गर्भवती महिलाओं को रोज थोड़ी देर टहलना चाहिए। इससे मां और बच्चे दोनों को फायदा होता है। गाना सुनना भी अच्छा होता है। कई लोग मानते हैं कि इससे बच्चा भी खुश होता है।
गर्भ में बच्चे का विकास (Development of the baby in the womb) सिर्फ शारीरिक नहीं, बल्कि भावनात्मक भी होता है। मां का प्यार बच्चे को मजबूत बनाता है। यही प्यार उसे जीवन भर साथ देता है।
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