महाभारत की कथा में कई ऐसे पात्र हैं जो धर्म और अधर्म के संघर्ष को व्यक्त करते हैं। उनमें से एक महत्वपूर्ण पात्र है धृतराष्ट्र का पुत्र युयुत्सु। ये कहानी महाभारत काल की उन घटनाओं को सामने लाती है जब धृतराष्ट्र ने अपनी दासी से संबंध बनाए थे, जिससे युयुत्सु का जन्म हुआ। युयुत्सु का चरित्र सच्चाई और न्याय का प्रतीक है। ये कहानी उनके संघर्ष, उनके निर्णय और महाभारत युद्ध में उनकी भूमिका को उजागर करती है।
धृतराष्ट्र का दासी पुत्र युयुत्सु (Dhritarashtra’s Dasiputra: Yuyutsu)
कहते हैं कि जब गांधारी गर्भवती थीं, तब उस दौरान धृतराष्ट्र ने उनकी सेवा में लगी एक दासी से संबंध बनाए थे। यही वो समय था जब युयुत्सु का जन्म हुआ था। गांधारी को जब इस बात की जानकारी हुई तो वो काफी नाराज हो गई थीं। हालांकि युयुत्सु को राजकुमार की तरह सम्मान और शिक्षा दी गई।
भले ही युयुत्सु का पालन-पोषण राजकुमार की तरह हुआ, लेकिन उनके संबंध कौरवों से कभी अच्छे नहीं रहे। दुर्योधन को उनके अस्तित्व से ही ईर्ष्या थी। वो उन्हें हमेशा अलग मानता था और दुर्व्यवहार करता था। बावजूद इसके, युयुत्सु ने अपने जीवन में धर्म और न्याय के मार्ग का अनुसरण किया।
दुर्योधन से युयुत्सु के संबंध (Yuyutsu’s Relations with Duryodhana)
दुर्योधन हमेशा युयुत्सु के प्रति द्वेष रखता था। कौरवों को ये स्वीकार्य नहीं था कि युयुत्सु, जो एक दासी का पुत्र था, राजकुमार की तरह अधिकार पाए। लेकिन युयुत्सु ने अपने बुद्धिमान और न्यायप्रिय स्वभाव से अपनी अलग पहचान बनाई। जब सभा में द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था, युयुत्सु ने उसका कड़ा विरोध किया। ये घटना दर्शाती है कि वो हमेशा अधर्म के खिलाफ खड़ा रहा।
महाभारत युद्ध में युयुत्सु की भूमिका (Yuyutsu’s Role in Mahabharata War)
महाभारत युद्ध के दौरान युयुत्सु पहले कौरवों के पक्ष में था, लेकिन बाद में युधिष्ठिर के आग्रह पर पांडवों का साथ दिया। युद्ध में उसने रसद और हथियारों की व्यवस्था में पांडवों की मदद की। उनकी ये भूमिका पांडवों की जीत में निर्णायक साबित हुई। महाभारत के युद्ध के बाद भी वो पांडवों के प्रति वफादार रहा और युधिष्ठिर के शासन में मंत्री बना।
धर्म और न्याय का प्रतीक (Symbol of Dharma and Justice)
युयुत्सु का जीवन एक आदर्श उदाहरण है कि कैसे एक व्यक्ति परिस्थितियों से ऊपर उठकर अपने सिद्धांतों पर अडिग रह सकता है। युधिष्ठिर ने उन्हें परीक्षित का संरक्षक बनाया, जहां उन्होंने अपने कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन किया।
ये भी पढ़ें: वो देश जहां के राजाओं को माना जाता है राम का वंशज, रामायण है राष्ट्रीय ग्रंथ, गरुड़ प्रतीक चिह्न