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सेंट्रल और वेस्टर्न रेलवे के एस्केलेटर मेंटेनेंस में धांधली का शक! खर्चों में बड़ा फ़र्क

सेंट्रल और वेस्टर्न रेलवे के एस्केलेटर मेंटेनेंस में धांधली का शक! खर्चों में बड़ा फ़र्क

रेलवे के एस्केलेटर तो स्टेशन पर सबको सुविधा देने के लिए लगाए जाते हैं, मगर क्या आपको पता है कि सेंट्रल और वेस्टर्न रेलवे में इनके मेन्टेनेंस के खर्च में कितना बड़ा अंतर है? RTI से जो खुलासा हुआ है, उसे सुनकर आप हैरान हो जाएंगे! जहां वेस्टर्न रेलवे का खर्च एकदम बाज़िब है, वहीं सेंट्रल रेलवे में कुछ गड़बड़ लगती है।

RTI एक्टिविस्ट अनिल गलानी ने रेलवे से एस्केलेटर मेन्टेनेंस के खर्च के बारे में पूछा था। जो जवाब मिला उसने सबको चौंका दिया है। वेस्टर्न रेलवे एक एस्केलेटर को चलाने के लिए सालाना सिर्फ़ 1.85 लाख रुपये खर्च करती है।  इसके उलट, सेंट्रल रेलवे का खर्च दोगुने से भी ज़्यादा है – पूरे 2.97 लाख रुपये प्रति एस्केलेटर! हिसाब लगाएं तो वेस्टर्न रेलवे रोज़ाना एक एस्केलेटर पर 500 रुपये लगाती है, जबकि सेंट्रल रेलवे 800 रुपये से भी ऊपर!

इस बारे में जब सेंट्रल रेलवे से सवाल किया गया, तो उन्होंने बताया कि सेंट्रल लाइन पर वेस्टर्न के मुकाबले पैसेंजर्स की संख्या बहुत ज़्यादा है, खासकर लोकल में। साथ ही, कई पैसेंजर गांव-देहात से आते हैं और शायद उन्हें एस्केलेटर इस्तेमाल करने की आदत नहीं है। इस वजह से एस्केलेटर बार-बार खराब होते हैं और मेंटेनेंस का खर्च बढ़ जाता है।

RTI के एक और जवाब से पता चला कि वेस्टर्न रेलवे की लोकल लाइन पर साल में औसतन 1825 बार एस्केलेटर बंद करने पड़ते हैं। यानी रोज़ाना तकरीबन 5 बार! इनमें से 95% मामले ऐसे थे जहां किसी बदमाश या शरारती तत्व ने इमरजेंसी बटन दबा दिया था।

वहीं सेंट्रल रेलवे में ये आंकड़ा 1975 है, यानी रोज़ लगभग 5.4 एस्केलेटर बंद करने पड़ते हैं। यहां भी 98% मामलों का कारण बेमतलब इमरजेंसी बटन दबाना है!

अनिल गलानी का कहना है कि इतना पैसा खर्च करने के बाद भी कई एस्केलेटर अकसर बंद रहते हैं। उन्हें लगता है कि इस मामले की जांच होनी चाहिए। आपको क्या लगता है?

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