EVM vs Ballot Paper: महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के एक छोटे से गांव ने ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) पर सवाल उठाते हुए “बैलेट पेपर” (Ballot Paper) से अनाधिकारिक मतदान करने का साहसिक निर्णय लिया है। यह कदम तब उठाया गया जब गांववालों को विधानसभा चुनाव के नतीजों पर संदेह हुआ।
यह अनूठी पहल, जो पूरी तरह गांववालों द्वारा आयोजित की जा रही है, राजनीतिक गलियारों और प्रशासन में चर्चा का विषय बन गई है। आइए, इस दिलचस्प कहानी को विस्तार से समझते हैं।
बैलेट पेपर से मतदान: क्यों उठाया गया यह कदम?
सोलापुर जिले का मारकावाडी गांव मालशिराज विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है। हाल ही में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में एनसीपी (SP) के प्रत्याशी उत्तमराव जांकर ने भाजपा के राम सतपुते को हराया। हालांकि, गांव के निवासियों का कहना है कि परिणाम उनके उम्मीदों के खिलाफ हैं।
गांव के एक निवासी ने कहा, “हमेशा से जांकर को समर्थन देने वाले गांव ने इस बार अचानक भाजपा के पक्ष में मतदान कैसे कर दिया? 2000 में से 1900 वोट पड़े और जांकर को केवल 843 वोट मिले। यह आंकड़े हमें स्वीकार नहीं। इसलिए हमने ‘बैलेट पेपर’ (Ballot Paper) से पुनः मतदान करवाने का निर्णय लिया।”
प्रशासन की चिंता और पुलिस की तैनाती
इस तरह का अनौपचारिक मतदान प्रशासन की नजरों में गंभीर मुद्दा बन गया है। सोलापुर के एसपी अतुल कुलकर्णी ने कहा, “गांव में तनाव का माहौल न बने, इसके लिए हमने पुलिस बल तैनात कर दिया है। साथ ही गांववालों से बात की जा रही है कि वे इस कदम से पीछे हटें।”
मालशिराज सीट के रिटर्निंग ऑफिसर ने कहा कि मतदान की प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी थी और तीन बूथों पर किसी प्रकार की गड़बड़ी नहीं हुई। हालांकि, गांववाले इसे मानने को तैयार नहीं हैं।
वोटिंग की तैयारी: गांववालों का तरीका
गांववालों ने इस अनाधिकारिक मतदान के लिए चंदा इकट्ठा करके “बैलेट पेपर” (Ballot Paper) तैयार करवाया है। इन बैलेट पेपर्स पर प्रत्याशियों के नाम और फोटो भी प्रिंट किए गए हैं। इसके साथ ही गांव में वोटिंग के लिए बड़े पैमाने पर बैनर लगाए गए और हर निवासी को मतदान के लिए आमंत्रित किया गया।
इस प्रक्रिया को पूरी तरह चुनाव जैसी पारदर्शी बनाने के लिए गांववालों ने तहसीलदार से अपील की है कि कुछ सरकारी अधिकारियों को प्रक्रिया पर नजर रखने के लिए भेजा जाए।
भाजपा समर्थकों की नाराजगी
गांव के भाजपा समर्थकों ने इस मतदान प्रक्रिया में शामिल होने से इनकार कर दिया है। एक भाजपा समर्थक ने कहा, “गांव के सभी लोगों को विश्वास में लिए बिना यह निर्णय लिया गया है। यदि चुनाव करवाना ही है, तो इसे चुनाव अधिकारी को करवाना चाहिए।”
यह मतभेद गांव के भीतर राजनीतिक ध्रुवीकरण को भी उजागर करता है, जहां दो विचारधाराएं टकरा रही हैं।
क्या यह लोकतंत्र के लिए खतरा है या विश्वास की बहाली?
गांववालों का यह कदम लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने की कोशिश हो सकता है, जहां जनता अपनी आवाज उठाने से पीछे नहीं हटती। हालांकि, प्रशासन और विशेषज्ञ इसे अव्यवस्था और तनाव फैलाने वाला कदम मान रहे हैं।
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