Fadnavis Reveals Electoral Strategy: महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर बड़ा भूचाल आने की संभावना है। उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के एक बयान ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। यह चुनाव महाराष्ट्र के लिए बेहद अहम साबित हो सकता है।
महाराष्ट्र का खेला (Maharashtra’s Game) की शुरुआत 20 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ही हो चुकी है। फडणवीस का कहना है कि यह चुनाव काफी अजीब है और नतीजों के बाद ही पता चलेगा कि कौन किसके साथ है। उन्होंने यह भी कहा कि महायुति के अंदर भी कुछ विरोधाभास हैं, लेकिन महाराष्ट्र का खेला इस बार कुछ अलग ही होगा।
विपक्ष की बेचैनी का कारण
महाविकास अघाड़ी के लिए फडणवीस का यह बयान चिंता का विषय बन गया है। उन्होंने साफ कर दिया है कि इस बार का चुनाव बिल्कुल अलग होगा। राहुल गांधी के संविधान वाले मुद्दे पर भी उन्होंने करारा प्रहार किया। फडणवीस ने कहा कि कांग्रेस संविधान का बुर्का पहने हुए है, लेकिन अंदर से खाली है।
चुनावी रणनीति का मास्टर प्लान
फडणवीस की चुनावी रणनीति का खुलासा (Fadnavis Reveals Electoral Strategy) करते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा का नारा ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ विपक्षी महाविकास आघाडी के तुष्टिकरण की राजनीति का जवाब है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस नारे का मतलब यह नहीं है कि वे किसी समुदाय के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष ने ‘वोट जिहाद’ का प्रयोग किया और मस्जिदों में विशेष पार्टी को वोट देने के लिए पोस्टर लगवाए।
आर्थिक मजबूती का दावा
फडणवीस ने महाराष्ट्र की आर्थिक स्थिति को लेकर भी बड़ा दावा किया है। उन्होंने कहा कि राज्य की अर्थव्यवस्था 40 लाख करोड़ रुपये की है, जिस पर मात्र 6-6.5 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। उन्होंने उत्तर प्रदेश का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां भी इतना ही कर्ज है, लेकिन उसकी अर्थव्यवस्था 25 लाख करोड़ रुपये की है। लाडकी बहिन योजना पर होने वाले 46,000 करोड़ रुपये के खर्च को लेकर भी उन्होंने कहा कि यह राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए कोई बड़ी चुनौती नहीं है।
मुख्यमंत्री पद का फॉर्मूला
महायुति में मुख्यमंत्री पद को लेकर भी फडणवीस ने स्थिति स्पष्ट की है। उनका कहना है कि इस बारे में कोई पूर्व निर्धारित फॉर्मूला नहीं है। चुनाव परिणाम आने के बाद तीनों दलों के नेता मिलकर इस पर फैसला करेंगे। एकनाथ शिंदे और अजित पवार अपनी-अपनी पार्टियों के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, जबकि भाजपा में संसदीय बोर्ड पार्टी अध्यक्ष को निर्णय लेने का अधिकार देता है।