महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया मोड़ आ गया है. अजित का राजनीतिक दांव (Ajit’s Political Move) सभी को हैरान कर रहा है. डिप्टी सीएम अजित पवार ने पीएम मोदी की मुंबई रैली में शामिल न होकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं. अजित का राजनीतिक दांव लगातार चर्चा का विषय बन रहा है.
मुंबई के शिवाजी पार्क में आयोजित पीएम मोदी की रैली में न केवल अजित पवार नदारद रहे, बल्कि उनकी पार्टी का कोई भी वरिष्ठ नेता मौजूद नहीं था. यह घटना तब और भी ज्यादा चर्चा में आ गई, जब शिंदे गुट और अन्य सहयोगी दल के नेता रैली में मौजूद थे. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह महज एक संयोग नहीं हो सकता.
पिछले कुछ समय से अजित पवार के कदम काफी चर्चा में रहे हैं. पहले उन्होंने नवाब मलिक को टिकट देकर भाजपा और फडणवीस के विरोध को नजरअंदाज किया. फिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ‘बटेंगे तो कटेंगे’ वाले बयान का खुला विरोध किया. अब पीएम की रैली से दूरी ने नई चर्चा छेड़ दी है.
महायुति में अजित की दुविधा भरी स्थिति (Ajit’s Dilemma in Mahayuti Alliance) साफ दिखाई दे रही है. लोकसभा चुनाव में मुस्लिम वोटरों के रुख ने उन्हें चिंतित कर दिया है. इसलिए वे मुस्लिम समुदाय को साधने की कोशिश कर रहे हैं. नवाब मलिक और उनकी बेटी सना मलिक को टिकट देने के साथ-साथ बाबा सिद्दीकी के बेटे जीशान सिद्दीकी को भी मैदान में उतारा है.
विधानसभा चुनाव में 20 नवंबर को मतदान होना है और 23 नवंबर को नतीजे आएंगे. ऐसे में अजित पवार की यह रणनीति कितनी कामयाब होती है, यह देखना दिलचस्प होगा. एक तरफ उन्हें महायुति के साथ तालमेल बिठाना है, तो दूसरी तरफ अपने मुस्लिम वोट बैंक को भी बचाए रखना है.
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अजित पवार अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत करने की कोशिश में हैं. वे न तो भाजपा से पूरी तरह दूर जा सकते हैं और न ही पूरी तरह साथ दिखाई दे सकते हैं. यही वजह है कि वे एक संतुलन बनाने की कोशिश कर रहे हैं.
महाराष्ट्र की राजनीति में यह नया मोड़ आने वाले दिनों में क्या रंग लाता है, यह तो समय ही बताएगा. लेकिन फिलहाल अजित पवार के हर कदम पर सियासी दलों की पैनी नजर बनी हुई है.