महाराष्ट्र

Farooq Takla: मुंबई 1993 बम विस्फोट मामले में दाऊद के करीबी फारूक टकला को 5 साल की सजा

Farooq Takla: मुंबई 1993 बम विस्फोट मामले में दाऊद के करीबी फारूक टकला को 5 साल की सजा

Farooq Takla: 12 मार्च 1993 का दिन मुंबई के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है। उस दिन शहर में हुए 12 बम विस्फोटों ने 257 लोगों की जान ले ली और 1,400 से अधिक लोगों को घायल कर दिया। इन हमलों के पीछे अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम का नाम प्रमुखता से उभरा, और उसके सहयोगी फारूक टकला (Farooq Takla) भी इस मामले में एक अहम कड़ी थे। हाल ही में, 4 मई 2025 को, मुंबई की एक अदालत ने फारूक टकला को पासपोर्ट धोखाधड़ी (Passport Fraud) के एक अलग मामले में दोषी ठहराते हुए पांच साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई। यह खबर न केवल 1993 के बम विस्फोटों की यादों को ताजा करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कानून का पहिया कितनी धीमी गति से, लेकिन निश्चित रूप से घूमता है।

फारूक टकला का नाम उन लोगों में शुमार है, जिन्हें 1993 के मुंबई बम विस्फोट (Mumbai Bomb Blast) मामले में संदिग्ध माना गया। वह दाऊद इब्राहिम का करीबी सहयोगी था और उसकी दुबई में चल रही गतिविधियों का हिस्सा रहा। लेकिन उसकी गिरफ्तारी और अब सजा, एक अलग अपराध—पासपोर्ट धोखाधड़ी—के लिए हुई है। यह कहानी शुरू होती है 8 मार्च 2018 से, जब टकला को दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पकड़ा गया। वह दुबई से मुस्ताक मोहम्मद मिया के नाम से यात्रा कर रहा था, और उसके पास एक जाली भारतीय पासपोर्ट था। यह पासपोर्ट 2011 में जारी किया गया था और 2001 के एक पुराने पासपोर्ट से जुड़ा था।

मुंबई की एस्प्लेनेड कोर्ट में अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट आर. डी. चव्हाण की अध्यक्षता में चले इस मुकदमे ने कई चौंकाने वाले तथ्य सामने लाए। अभियोजन पक्ष, जिसे केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने संभाला, ने साबित किया कि टकला ने नकली पहचान के जरिए पासपोर्ट हासिल किया और इसका इस्तेमाल कई सालों तक कानून से बचने के लिए किया। उसने मुस्ताक मोहम्मद मिया नाम का इस्तेमाल किया, जो असल में एक ऐसी शख्सियत थी जिसने कभी पासपोर्ट के लिए आवेदन ही नहीं किया था। जांच में पता चला कि टकला ने जाली दस्तावेजों के साथ पासपोर्ट बनवाया और इसका इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय यात्रा के लिए किया।

अदालत में सुनवाई के दौरान कई गवाहों ने टकला के खिलाफ बयान दिए। इनमें इमिग्रेशन अधिकारी, एयर इंडिया के सतर्कता कर्मी, सरकारी अधिकारी और हस्तलेखन विशेषज्ञ शामिल थे। बेलापुर के केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला ने टकला के हस्तलेखन और हस्ताक्षर के नमूनों की जांच की, जिससे यह पक्का हो गया कि जाली दस्तावेजों पर वही हस्ताक्षर थे। जांच अधिकारी शिवकुमार जयंत ने बताया कि टकला ने 2018 में प्रधानमंत्री को अपने असली नाम से पत्र लिखे थे, लेकिन उसके यात्रा दस्तावेजों में नकली नाम दर्ज था। यह दोहरी पहचान ही उसके अपराध का सबसे बड़ा सबूत बनी।

अदालत ने टकला को भारतीय दंड संहिता और पासपोर्ट अधिनियम की कई धाराओं के तहत दोषी पाया। उसकी सजा में पांच साल की सश्रम कारावास और जुर्माने का प्रावधान शामिल है। सबसे भारी सजा—पांच साल—उसे धोखाधड़ी और जालसाजी के लिए मिली। इसके अलावा, उस पर छोटी-छोटी सजाएं भी लगाई गईं, जो सभी एक साथ चलेंगी। इसका मतलब है कि उसे कुल पांच साल जेल में बिताने होंगे। अगर वह जुर्माना नहीं भर पाता, तो उसे अतिरिक्त कारावास का सामना करना पड़ेगा।

यह मामला सिर्फ पासपोर्ट धोखाधड़ी तक सीमित नहीं है। यह हमें 1993 के उस भयावह दिन की याद दिलाता है, जब मुंबई की सड़कों पर बमों की गूंज थी। फारूक टकला (Farooq Takla) उन लोगों में से एक था, जिन्हें इस मामले में वांछित घोषित किया गया था। उसकी गिरफ्तारी और अब सजा, भले ही एक अलग अपराध के लिए हो, यह दिखाती है कि कानून की पहुंच से कोई नहीं बच सकता। टकला की कहानी उस दौर की अंडरवर्ल्ड गतिविधियों की भी झलक देती है, जब दाऊद इब्राहिम और उसके सहयोगी मुंबई पर अपनी पकड़ बनाए हुए थे।

1993 के बम विस्फोटों की जांच में कई लोग दोषी पाए गए, लेकिन दाऊद इब्राहिम और टाइगर मेमन जैसे मुख्य साजिशकर्ता आज भी फरार हैं। टकला की गिरफ्तारी और सजा इस लंबी कानूनी लड़ाई का एक छोटा, लेकिन महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह उन परिवारों के लिए भी एक संदेश है, जिन्होंने उस दिन अपने प्रियजनों को खोया था। भले ही पूरा इंसाफ अभी बाकी हो, लेकिन टकला जैसे लोगों को सजा मिलना यह दिखाता है कि न्याय की प्रक्रिया रुकती नहीं।

टकला का मामला यह भी बताता है कि अपराधी कितनी चालाकी से कानून को धोखा देने की कोशिश करते हैं। जाली पासपोर्ट और नकली पहचान का इस्तेमाल करके वह सालों तक दुबई में छिपा रहा। लेकिन सीबीआई की सतर्कता और अंतरराष्ट्रीय सहयोग ने उसे आखिरकार पकड़ लिया। यह भारत की जांच एजेंसियों की ताकत और दृढ़ता को दर्शाता है।

मुंबई, जो उस भयानक दिन के बाद भी अपने जज्बे के लिए जानी जाती है, आज भी उन घावों को नहीं भूली है। मुंबई बम विस्फोट (Mumbai Bomb Blast) और पासपोर्ट धोखाधड़ी (Passport Fraud) जैसे मामले हमें याद दिलाते हैं कि अपराध और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई कितनी जटिल और लंबी हो सकती है। फारूक टकला की सजा इस लड़ाई में एक कदम आगे बढ़ने का प्रतीक है।

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