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महाराष्ट्र में मणिपुर जैसी स्थिति की आशंका: शरद पवार ने जताई चिंता, जानिए क्या है मामला

महाराष्ट्र में मणिपुर जैसी स्थिति की आशंका: शरद पवार ने जताई चिंता, जानिए क्या है मामला

महाराष्ट्र, जो कभी अपनी सामाजिक एकता और सद्भाव के लिए जाना जाता था, आज एक नए संकट से जूझ रहा है। राज्य में मराठा और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदायों के बीच आरक्षण को लेकर तनाव बढ़ता जा रहा है। यह तनाव इतना बढ़ गया है कि राज्य के वरिष्ठ नेता और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के प्रमुख शरद पवार को चिंता होने लगी है कि कहीं महाराष्ट्र में भी मणिपुर जैसी स्थिति न बन जाए।

शरद पवार ने नवी मुंबई में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में बोलते हुए इस मुद्दे पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में अभी तक ऐसी स्थिति इसलिए नहीं आई है क्योंकि यहाँ सद्भाव और समानता को बढ़ावा देने वाले नेताओं की एक लंबी परंपरा रही है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा हालात पर ध्यान देना बहुत जरूरी है।

पवार ने मणिपुर की स्थिति का जिक्र करते हुए केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की। उन्होंने कहा कि मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच एक साल से ज्यादा समय से चल रही जातीय हिंसा को रोकने में सरकार नाकाम रही है। यह बात बहुत चिंता का विषय है। पवार ने चेतावनी दी कि अगर सही कदम नहीं उठाए गए तो महाराष्ट्र में भी ऐसी ही स्थिति बन सकती है।

शरद पवार ने कहा कि राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह इस मुद्दे को गंभीरता से ले और लोगों का विश्वास बनाए रखे। उन्होंने कहा कि सरकार को सभी समुदायों के बीच एकता बनाए रखनी चाहिए और किसी भी तरह की हिंसा को रोकना चाहिए। पवार ने केंद्र सरकार पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि केंद्र ने मणिपुर के मुद्दे पर ठीक से ध्यान नहीं दिया। उन्होंने कहा, “इतना कुछ हो जाने के बाद भी, प्रधानमंत्री को कभी यह नहीं लगा कि उन्हें वहाँ जाकर लोगों को राहत देनी चाहिए।”

महाराष्ट्र में मराठा और ओबीसी समुदायों के बीच आरक्षण को लेकर जो तनाव बढ़ रहा है, उसकी जड़ में है नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण का मुद्दा। मराठा समुदाय लंबे समय से अपने लिए आरक्षण की मांग कर रहा है। वहीं ओबीसी समुदाय का कहना है कि अगर मराठाओं को आरक्षण दिया गया तो उनके हिस्से का आरक्षण कम हो जाएगा।

शरद पवार ने कहा कि इस मुद्दे पर सरकार की ओर से जो बातचीत होनी चाहिए थी, वह नहीं हुई है। उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री एक समूह से बात करते हैं, तो सरकार के दूसरे लोग दूसरे समूह से बात करते हैं। इससे गलतफहमी पैदा होती है।” पवार ने सरकार से आग्रह किया कि वह सभी पक्षों के साथ मिलकर इस समस्या का हल निकाले।

पिछले हफ्ते शरद पवार ने इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से भी मुलाकात की। उन्होंने मुख्यमंत्री से कहा कि वे सभी संबंधित पक्षों के साथ बैठकर इस समस्या का समाधान निकालें। पवार ने कहा कि राज्य में शांति और सद्भाव बनाए रखना बहुत जरूरी है।

महाराष्ट्र की यह स्थिति हमें सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे आरक्षण जैसा मुद्दा समाज में इतना बड़ा बंटवारा पैदा कर सकता है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर बहुत सावधानी से और सभी पक्षों को साथ लेकर काम करने की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

महाराष्ट्र की यह स्थिति हमें यह भी याद दिलाती है कि सामाजिक सद्भाव और एकता कितनी नाजुक होती है। इसे बनाए रखने के लिए लगातार प्रयास करने की जरूरत होती है। अगर हम अपने मतभेदों को बातचीत के जरिए हल नहीं करेंगे तो वे बड़े संघर्ष का रूप ले सकते हैं।

अब सवाल यह है कि क्या महाराष्ट्र सरकार इस चुनौती से निपटने में सफल होगी? क्या वह मराठा और ओबीसी समुदायों के बीच एक ऐसा समझौता करा पाएगी जो दोनों पक्षों को स्वीकार्य हो? यह आने वाले समय में देखने को मिलेगा। लेकिन एक बात तय है कि अगर जल्द ही कोई समाधान नहीं निकाला गया तो स्थिति और बिगड़ सकती है।

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