भारत में सामाजिक कल्याण योजनाओं का एक अहम हिस्सा मुफ्त राशन योजना रही है। लेकिन हाल ही में मुफ्त राशन योजना (Free Ration Scheme) पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ने इसे एक नई बहस का केंद्र बना दिया है। न्यायालय ने केंद्र सरकार से सवाल किया कि आखिर कब तक मुफ्त राशन जैसी योजनाओं पर निर्भरता रखी जाएगी, और क्यों रोजगार व क्षमता निर्माण पर अधिक ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
सोमवार को जस्टिस सूर्यकांत और मनमोहन की पीठ ने केंद्र सरकार से मुफ्त राशन योजना के बारे में सवाल किया। अदालत ने 81 करोड़ लोगों को मुफ्त या रियायती राशन दिए जाने पर हैरानी जताते हुए कहा कि “क्या केवल करदाता ही इससे वंचित हैं?” कोर्ट का यह बयान उस समय आया, जब सरकार ने बताया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत इस योजना को लागू किया जा रहा है।
प्रवासी श्रमिकों के लिए रोजगार और समर्थन
कोर्ट ने जोर देकर कहा कि रोजगार और क्षमता निर्माण (Employment and Skill Development) की दिशा में ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि केवल मुफ्त चीजें देना समस्या का हल नहीं है। लोगों को आत्मनिर्भर बनाने और उनके लिए रोजगार के अवसर पैदा करने की आवश्यकता है।
एनजीओ की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत प्रवासी श्रमिकों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराना आवश्यक है। कोर्ट ने इसके जवाब में राज्यों को इस दिशा में प्रयास करने की सलाह दी, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि मुफ्त राशन को स्थायी समाधान के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।
मुफ्त राशन का राजनीतिक पहलू
कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि मुफ्त राशन योजनाएं राजनीतिक लाभ उठाने के लिए तो नहीं चलाई जा रहीं। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि कई बार राज्यों द्वारा राशन कार्ड इसलिए जारी किए जाते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि मुफ्त राशन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है।
जनगणना का मुद्दा
प्रशांत भूषण ने यह भी बताया कि केंद्र सरकार वर्तमान में 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर निर्भर है। यदि 2021 की जनगणना समय पर हुई होती, तो प्रवासी श्रमिकों की संख्या और उनकी वास्तविक स्थिति का बेहतर आकलन हो सकता था। यह समस्या आज के संदर्भ में और भी गंभीर हो जाती है, क्योंकि कोविड-19 महामारी के बाद प्रवासी श्रमिकों की संख्या और उनकी जरूरतें बढ़ी हैं।
रोजगार के अवसर बनाम मुफ्त योजनाएं
सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी ने एक बड़े मुद्दे को सामने लाया है—मुफ्त योजनाओं और आत्मनिर्भरता के बीच संतुलन कैसे बनाए रखा जाए। जहां मुफ्त राशन योजना जैसे कदम तत्काल राहत प्रदान करते हैं, वहीं रोजगार और क्षमता निर्माण जैसे दीर्घकालिक समाधान देश की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को मजबूत कर सकते हैं।