Freedom of Speech in Britain: ब्रिटेन में हाल ही में एक ऐसी घटना घटी है, जो अभिव्यक्ति की आजादी और मानवीय अधिकारों पर चर्चा का केंद्र बन गई है। दो प्रमुख भारतीय समुदाय के नेताओं, टोरी पीयर रामी रेंजर और हिंदू काउंसिल यूके के मैनेजिंग ट्रस्टी अनिल भनोट, को ब्रिटेन के राजा द्वारा उनके प्रतिष्ठित सम्मानों से वंचित कर दिया गया। इस घटना ने न केवल भारतीय समुदाय, बल्कि ब्रिटेन में अभिव्यक्ति की आजादी पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
सम्मान छीनने की पूरी कहानी
रामी रेंजर, जिन्हें 2016 में ब्रिटिश व्यापार और सामुदायिक सेवा में योगदान के लिए CBE (कमांडर ऑफ़ द ऑर्डर ऑफ़ द ब्रिटिश एम्पायर) का सम्मान मिला था, और अनिल भनोट, जिन्हें सामुदायिक सामंजस्य के लिए OBE (ऑफिसर ऑफ़ द ऑर्डर ऑफ़ द ब्रिटिश एम्पायर) से सम्मानित किया गया था, से अब ये प्रतिष्ठित सम्मान वापस ले लिए गए हैं।
ब्रिटेन के “लंदन गजट” ने शुक्रवार को इस फैसले की घोषणा की। इस फैसले के तहत रेंजर और भनोट से उनके प्रतीक चिन्ह वापस लेने के लिए कहा गया। अब वे अपने सम्मान का कोई संदर्भ सार्वजनिक या निजी रूप से नहीं दे सकते।
ट्वीट और विवाद की जड़
अनिल भनोट का कहना है कि उनके खिलाफ इस्लामोफोबिया के आरोप लगे हैं, जो 2021 में बांग्लादेश में हिंदुओं पर हिंसा (Violence Against Hindus in Bangladesh) पर उनके द्वारा लिखे गए ट्वीट के कारण थे। उन्होंने इसे “अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला” बताते हुए कहा कि उनकी टिप्पणियों का उद्देश्य हिंसा की निंदा करना और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करना था।
रामी रेंजर ने भी इस फैसले की निंदा करते हुए इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया। उन्होंने कहा कि उनका सम्मान छीनना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कमजोर करना है। रेंजर ने बीबीसी की विवादास्पद डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ को चुनौती दी थी और प्रधानमंत्री मोदी का बचाव किया था।
शिकायतों का आधार
रेंजर और भनोट के खिलाफ की गई शिकायतों में मुख्य रूप से उनके ट्वीट्स और टिप्पणियां शामिल थीं। रेंजर पर सिख फॉर जस्टिस की शिकायतें दर्ज थीं, जो उनके साउथॉल गुरुद्वारा ट्रस्टी पर किए गए ट्वीट्स से संबंधित थीं। वहीं भनोट का कहना है कि उनके ट्वीट केवल तथ्यात्मक थे और किसी भी धर्म विशेष के खिलाफ नहीं थे।
मानवाधिकार और न्याय की मांग
रेंजर ने इस निर्णय के खिलाफ न्यायिक समीक्षा और यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय में जाने की योजना बनाई है। उनका कहना है कि ब्रिटेन जैसे लोकतांत्रिक देश में यह घटना न केवल भारतीय समुदाय के लिए, बल्कि पूरे मानवाधिकार तंत्र के लिए चिंताजनक है।
क्या है सामुदायिक प्रभाव?
इस घटना ने भारतीय समुदाय में नाराजगी पैदा की है। लोगों का मानना है कि यह फैसला न केवल उनकी स्वतंत्रता को बाधित करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि ब्रिटेन जैसे देश में भी व्यक्तिगत विचारों को खुलकर व्यक्त करना मुश्किल हो सकता है।
यह मामला इस बात को उजागर करता है कि अभिव्यक्ति की आजादी पर बहस केवल विकासशील देशों तक सीमित नहीं है। रेंजर और भनोट का मामला दुनिया को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या पश्चिमी देश वास्तव में उन मूल्यों का पालन करते हैं, जिनका वे प्रचार करते हैं। उनकी लड़ाई न केवल उनकी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा के लिए, बल्कि मानवाधिकारों और अभिव्यक्ति की आजादी के लिए भी है।.
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