भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO चीफ) के प्रमुख डॉ. एस सोमनाथ की जीवन कहानी एक ऐसी प्रेरणादायक गाथा है, जो हमें सिखाती है कि सपने कोई भी देख सकता है, लेकिन उन्हें साकार करने के लिए अथक परिश्रम और दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है। आइए, उनकी इस रोमांचक यात्रा को विस्तार से जानें।
डॉ. एस सोमनाथ ने हाल ही में IIT मद्रास से PhD की उपाधि प्राप्त की है। यह सम्मान उन्हें IIT मद्रास के 61वें दीक्षांत समारोह में प्रदान किया गया। सोमनाथ, जो पेशे से एयरोस्पेस इंजीनियर हैं, अब गर्व से डॉ. एस सोमनाथ कहलाते हैं। उनका नाम ‘सोमनाथ’, जिसका संस्कृत में अर्थ ‘चंद्रमा का भगवान’ होता है, मानो उनके भविष्य का संकेत था। उन्होंने भारत के महत्वाकांक्षी चंद्रयान-3 मिशन का नेतृत्व किया और इसे सफलतापूर्वक अंजाम दिया, जिसने पूरे देश को गौरवान्वित किया।
यह ध्यान देने योग्य है कि सोमनाथ के पास पहले से ही कई मानद डॉक्टरेट की उपाधियां थीं, लेकिन यह PhD उन्हें अपने व्यक्तिगत शोध के माध्यम से मिली है, जो उनके लिए विशेष महत्व रखती है। IIT मद्रास से यह उपाधि प्राप्त करने के बाद डॉ. सोमनाथ ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए कहा कि यह उनके लिए एक सपने के सच होने जैसा है।
उन्होंने अपने संघर्ष की कहानी साझा करते हुए बताया कि वे एक साधारण गांव के लड़के थे, जिन्होंने कभी IIT का प्रवेश परीक्षा देने की हिम्मत नहीं जुटाई थी। हालांकि वे अपने स्कूल में टॉपर थे, फिर भी उनके मन में IIT जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में प्रवेश पाने का डर था। लेकिन उन्होंने अपने दिल में एक सपना संजोया था कि एक दिन वे IIT मद्रास से स्नातक की उपाधि प्राप्त करेंगे।
डॉ. सोमनाथ ने स्वीकार किया कि PhD करना, विशेष रूप से IIT मद्रास जैसे उत्कृष्ट संस्थान में, एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। उन्होंने बताया कि यह एक लंबी यात्रा रही है, जिसकी शुरुआत उन्होंने कई वर्ष पहले ही कर दी थी। उनका शोध विषय वाइब्रेशन आइसोलेटर्स पर केंद्रित था, जिस पर उन्होंने दशकों पहले ISRO में एक इंजीनियर के रूप में काम करना शुरू किया था।
अपनी PhD की यात्रा के बारे में बात करते हुए, सोमनाथ ने कहा कि यह उनके पिछले 35 वर्षों के काम का परिणाम है। उन्होंने अंतिम समय में किए गए गहन अध्ययन, कागजी कार्यवाही और सेमिनारों के माध्यम से अपनी PhD पूरी की। उन्होंने स्वीकार किया कि यह यात्रा बहुत लंबी और कठिन थी, जिसे पूरा करने के लिए उन्हें अथक परिश्रम करना पड़ा।
डॉ. सोमनाथ ने एक महत्वपूर्ण जीवन सबक भी साझा किया। उन्होंने कहा कि विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (VSSC) के निदेशक के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान भी उन्होंने अपने PhD के लक्ष्य पर ध्यान नहीं दिया था। लेकिन बाद में उन्हें एहसास हुआ कि जीवन में सभी जुनूनों और लक्ष्यों पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें पूरा करने का प्रयास करना चाहिए।
IIT मद्रास के इस विशेष दीक्षांत समारोह में लगभग 2,636 छात्रों को उपाधियां प्रदान की गईं, जिनमें बीटेक की डिग्री प्राप्त करने वाले स्नातक भी शामिल थे। इस समारोह की शोभा नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर बीरन के कोबिल्का की उपस्थिति से और बढ़ गई, जो मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित थे।
डॉ. एस सोमनाथ की यह प्रेरणादायक कहानी हमें सिखाती है कि कोई भी सपना, चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न हो, कड़ी मेहनत, दृढ़ संकल्प और निरंतर प्रयास से साकार किया जा सकता है। एक साधारण गांव के लड़के से लेकर ISRO के प्रमुख और अब PhD धारक तक की उनकी यात्रा, हर उस व्यक्ति के लिए एक मिसाल है जो अपने सपनों को पूरा करने की राह पर चल रहा है।
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