Ghansoli Depot Fire: नवी मुंबई के घनसोली बस डिपो में बुधवार की सुबह एक ऐसी घटना घटी, जिसने सबका ध्यान खींच लिया। यहाँ एक बड़ा अग्निकांड हुआ, जिसमें कई बसें जलकर खाक हो गईं। इस घटना ने न केवल नवी मुंबई महानगर परिवहन निगम (एनएमएमटी) को भारी वित्तीय नुकसान पहुँचाया, बल्कि इलेक्ट्रिक वाहनों की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े कर दिए। आग की इस घटना को “घनसोली डिपो अग्निकांड” (Ghansoli Depot Fire) के नाम से जाना जा रहा है, और यह एक “इलेक्ट्रिक बस सुरक्षा” (Electric Bus Safety) से जुड़ा गंभीर मुद्दा बन गया है। आइए, इस घटना की पूरी कहानी को सरल और आकर्षक तरीके से समझते हैं।
सुबह के समय, जब घनसोली बस डिपो में काम चल रहा था, अचानक आग की लपटें उठने लगीं। बताया जा रहा है कि यह आग एक इलेक्ट्रिक बस की मरम्मत के दौरान शॉर्ट सर्किट की वजह से भड़की। देखते ही देखते आग ने आसपास की बसों को अपनी चपेट में ले लिया। इस अग्निकांड में कम से कम पाँच बसें, जिनमें इलेक्ट्रिक और डीजल दोनों तरह की बसें शामिल थीं, पूरी तरह नष्ट हो गईं। यह दृश्य इतना भयावह था कि आसपास के लोग भी दहशत में आ गए। लेकिन सौभाग्य से, इस हादसे में किसी की जान नहीं गई। दमकल कर्मियों ने तुरंत मौके पर पहुँचकर आग पर काबू पा लिया, जिससे बड़ा नुकसान होने से बच गया। फिर भी, इस घनसोली डिपो अग्निकांड (Ghansoli Depot Fire) ने परिवहन विभाग को लाखों रुपये का नुकसान पहुँचाया।
यह घटना केवल एक हादसा नहीं थी, बल्कि इसने इलेक्ट्रिक बसों की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाए। हाल ही में, बृहन्मुंबई इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट (बेस्ट) को दी गई 50 नई इलेक्ट्रिक बसों में भी ऐसी ही खामियाँ पाई गई थीं। ये बसें, जो एवे ट्रांस प्राइवेट लिमिटेड द्वारा आपूर्ति की गई थीं, मुंबई के सार्वजनिक परिवहन को मजबूत करने के लिए लाई गई थीं। लेकिन निरीक्षण के दौरान पता चला कि इन बसों में अग्नि पहचान और दमन प्रणाली (एफडीएसएस) नहीं थी, जो वाहन सुरक्षा मानकों का एक अनिवार्य हिस्सा है। यह प्रणाली आग लगने की स्थिति में कुछ ही सेकंड में उसे पहचानकर बुझाने का काम करती है और यात्रियों को निकालने के लिए ध्वनि और दृश्य अलार्म भी देती है।
इन 50 बसों को मार्च और मई के बीच तारदेव क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (आरटीओ) में पंजीकृत किया गया था। लेकिन मई के बाद माजास डिपो में आई कुछ बसें अभी तक पंजीकृत नहीं हुई थीं। इन बसों में एफडीएसएस की कमी ने इन्हें यात्री सेवाओं के लिए अयोग्य बना दिया। एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि बिना इस प्रणाली के ये बसें खतरा बन सकती हैं। बताया गया कि आमतौर पर एफडीएसएस को निर्माण के समय ही बसों में लगाया जाता है, लेकिन बाजार में इसकी कमी के कारण आपूर्तिकर्ता ने बसों को जल्दी भेज दिया ताकि पंजीकरण और डिपो प्रक्रिया जल्द शुरू हो सके। अब इन प्रणालियों को जून के मध्य तक लगाने की योजना है।
यह घटना इलेक्ट्रिक बस सुरक्षा (Electric Bus Safety) के महत्व को रेखांकित करती है। घनसोली डिपो अग्निकांड (Ghansoli Depot Fire) ने दिखाया कि अगर सुरक्षा मानकों का पालन न किया जाए, तो कितना बड़ा नुकसान हो सकता है। यह प्रणाली ऑटोमोटिव इंडस्ट्री स्टैंडर्ड (एआईएस-135) के तहत आग को एक मिनट के भीतर नियंत्रित करने के लिए बनाई गई है। लेकिन जब ऐसी प्रणालियाँ अनुपस्थित हों, तो हादसे का खतरा बढ़ जाता है। यह घटना नवी मुंबई और मुंबई के परिवहन विभाग के लिए एक सबक है कि वे अपने बेड़े की सुरक्षा को और मजबूत करें।
इस हादसे ने न केवल स्थानीय लोगों को चिंतित किया, बल्कि यह भी सवाल उठाया कि क्या हमारी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पूरी तरह सुरक्षित है। खासकर इलेक्ट्रिक बसों के बढ़ते उपयोग के साथ, उनकी सुरक्षा और रखरखाव पर और ध्यान देने की जरूरत है। यह घटना हमें यह भी याद दिलाती है कि तकनीकी प्रगति के साथ-साथ सुरक्षा मानकों को भी प्राथमिकता देनी होगी।
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