Herald House: भारत के तीन प्रमुख शहरों—दिल्ली, लखनऊ और मुंबई—में एक ऐसी खबर सुर्खियों में है, जो राजनीतिक और आर्थिक गलियारों में हलचल मचा रही है। प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) ने एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (Associated Journals Limited) की 661 करोड़ रुपये की संपत्तियों पर कब्जे की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यह कार्रवाई मनी लॉन्ड्रिंग के एक बड़े मामले से जुड़ी है, जिसने कई सवाल खड़े किए हैं। आइए, इस मामले को गहराई से समझते हैं और जानते हैं कि यह कहानी कैसे सामने आई।
मुंबई के बांद्रा पूर्व में स्थित हैरल्ड हाउस (Herald House) इस मामले का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह नौ मंजिला इमारत, जिसमें दो बेसमेंट भी हैं, अपनी भव्यता और स्थान के कारण चर्चा में रही है। इस इमारत का कुल मूल्य करीब 120 करोड़ रुपये आंका गया है। प्रवर्तन निदेशालय ने इस इमारत के सातवें, आठवें और नौवें माले को निशाना बनाया है, जो जिंदल साउथ वेस्ट प्रोजेक्ट्स लिमिटेड नामक कंपनी को किराए पर दिए गए हैं। निदेशालय ने कंपनी को निर्देश दिया है कि वह हर महीने का किराया और लीज राशि सीधे निदेशालय के खाते में जमा करे। यह कदम इसलिए उठाया गया क्योंकि इस संपत्ति को मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) ने अपनी जांच के दायरे में लिया है।
यह कहानी केवल मुंबई तक सीमित नहीं है। बात शुरू होती है हरियाणा के पंचकूला से, जहां एक और संपत्ति इस मामले में उलझी हुई है। साल 1982 में पंचकूला के सेक्टर 6 में एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड को एक भूखंड आवंटित किया गया था। नियमों के अनुसार, इस भूखंड पर दस साल के भीतर निर्माण कार्य शुरू होना था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। नतीजतन, 1992 में हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण ने इस भूखंड को वापस ले लिया। लेकिन कहानी में ट्विस्ट तब आया, जब 2005 में तत्कालीन हरियाणा के मुख्यमंत्री ने इस भूखंड को दोबारा एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (Associated Journals Limited) को आवंटित कर दिया। यह आवंटन पुरानी दरों पर ब्याज के साथ किया गया, जो नियमों के खिलाफ माना गया। प्रवर्तन निदेशालय का कहना है कि इस प्रक्रिया में अनियमितताएं हुईं, जिसके कारण सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचा।
मुंबई में हैरल्ड हाउस (Herald House) की कहानी भी कम रोचक नहीं है। यह भूखंड 1983 में महाराष्ट्र सरकार ने एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (Associated Journals Limited) को नेहरू मेमोरियल लाइब्रेरी और रिसर्च सेंटर के लिए आवंटित किया था। मूल रूप से यह जगह अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए एक हॉस्टल के लिए आरक्षित थी। लेकिन करीब 30 साल तक यह भूखंड खाली पड़ा रहा। फिर 2004 में कंपनी ने इस पर एक सहकारी बैंक और कमोडिटी एक्सचेंज बनाने का प्रस्ताव रखा। इसके लिए उन्होंने मुंबई उपनगरीय कलेक्टर को आवश्यक शुल्क भी अदा किया। बाद में स्वरूप ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज नामक कंपनी के साथ एक समझौता हुआ, जिसने एक शैक्षणिक लाइब्रेरी के साथ-साथ सहकारी बैंक बनाने के लिए 10 लाख रुपये का भुगतान किया। लेकिन जब योजनाएं बदलीं, तो लाइब्रेरी का जिक्र हट गया और इस भूखंड का व्यावसायिक उपयोग शुरू हुआ। 2013 में बीएमसी ने निर्माण की अनुमति दी, और इमारत बनकर तैयार हुई।
प्रवर्तन निदेशालय की जांच में यह भी सामने आया कि पंचकूला के उस भूखंड को एक बैंक से लोन लेने के लिए गिरवी रखा गया था। इस लोन का इस्तेमाल मुंबई में हैरल्ड हाउस (Herald House) के निर्माण के लिए किया गया। निदेशालय का मानना है कि यह सारी प्रक्रिया गैरकानूनी थी, क्योंकि पंचकूला का भूखंड पहले ही नियमों के उल्लंघन के कारण वापस लिया जा चुका था। इस वजह से इस मामले को मनी लॉन्ड्रिंग से जोड़ा गया। 2020 में निदेशालय ने इस इमारत का एक हिस्सा, जिसका मूल्य 16.38 करोड़ रुपये था, पहले ही अटैच कर लिया था। अब 661 करोड़ रुपये की संपत्तियों पर कब्जे की कार्रवाई इसे और गंभीर बना रही है।
यह मामला इसलिए भी खास है, क्योंकि यह केवल संपत्ति के आवंटन तक सीमित नहीं है। यह उन नियमों और नीतियों की बात करता है, जो सार्वजनिक संसाधनों के उपयोग को नियंत्रित करते हैं। पंचकूला में भूखंड का दोबारा आवंटन हो या मुंबई में एक भव्य इमारत का निर्माण, हर कदम पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये फैसले नियमों के दायरे में थे। प्रवर्तन निदेशालय की यह कार्रवाई न केवल इन सवालों का जवाब तलाश रही है, बल्कि यह भी सुनिश्चित कर रही है कि ऐसी अनियमितताएं भविष्य में न हों।
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