RSS का जन्म कैसे हुआ? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना 27 सितंबर 1925 को केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर, महाराष्ट्र में की थी। इसका उद्देश्य भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना था। संघ का मानना है कि हिंदुत्व एक जीवन शैली है, और इसका लक्ष्य भारतीय समाज में राष्ट्रवाद को बढ़ावा देना है। संघ की शाखाएं आज भी पूरे भारत और विदेशों में सक्रिय हैं, जहां सुबह-शाम नियमित प्रार्थना और शारीरिक प्रशिक्षण का आयोजन होता है।
RSS का इतिहास और ताकत
RSS को दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन माना जाता है, जो बिना सरकारी सहायता के काम करता है। इसके करोड़ों स्वयंसेवक हैं, जो हर आपदा और राष्ट्रीय संकट के समय अपनी सेवाएं देते हैं। संघ की कई शाखाएं और सहायक संगठन जैसे विश्व हिंदू परिषद (VHP), बजरंग दल, भारतीय मजदूर संघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) आदि भारत की सेवा में लगे हैं। संघ का आदर्श वाक्य है “तेरा वैभव अमर रहे मां हम दिन चार रहें न रहें,” जो संघ की प्रार्थना में गाया जाता है।
बीजेपी और संघ के संबंध
RSS को बीजेपी का वैचारिक और संगठनात्मक आधार माना जाता है। बीजेपी के कई प्रमुख नेता, जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, और राजनाथ सिंह संघ से जुड़े रहे हैं। संघ की विचारधारा और दिशा-निर्देश भाजपा की नीतियों और कार्यों में अहम भूमिका निभाते हैं। बीजेपी की स्थापना 1980 में हुई थी, लेकिन उससे पहले जनसंघ के समय से ही संघ का समर्थन बीजेपी को मिलता रहा है।
मतभेद और मौजूदा स्थिति
2024 के लोकसभा चुनावों के नतीजों के बाद से संघ और बीजेपी के बीच खटपट की खबरें आ रही हैं। कहा जा रहा है कि संघ, बीजेपी के वर्तमान नेतृत्व से नाराज है, जिसके कारण संघ के स्वयंसेवकों ने चुनाव में बीजेपी के लिए काम नहीं किया। चुनावी नतीजों के बाद संघ की ओर से तीखे बयान आए और उसके मुखपत्र में लेख छपे, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि दोनों के बीच कुछ न कुछ विवाद चल रहा है।
पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान, फिर संघ की पत्रिका ऑर्गेनाइजर में छपे लेख और उसके बाद संघ के प्रचारक इंद्रेश कुमार के बयान से यह विवाद और गहरा गया। इससे पहले भी 2004 में बीजेपी और संघ के रिश्ते अपने सबसे नाजुक दौर में थे, जब संघ के पूर्व प्रमुख के.एस. सुदर्शन ने अटल बिहारी वाजपेयी की आलोचना की थी।
संघ का भविष्य और उसका प्रभाव
RSS ने अपने 100 साल के इतिहास में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं, लेकिन इसकी ताकत और प्रभाव हमेशा बना रहा है। संघ के करोड़ों स्वयंसेवक और उसकी शाखाएं आज भी भारतीय समाज में राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। संघ का कहना है कि हिंदू धर्म कोई धर्म नहीं बल्कि एक जीवन शैली है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी 1995 में अपने एक फैसले में माना था।
2024 के चुनावी नतीजों के बाद संघ और बीजेपी के बीच मतभेद की खबरें आई हैं, लेकिन संघ ने इस बात से इनकार किया है। हालांकि, संघ और बीजेपी के बीच विवाद की ये खबरें 2004 की याद दिलाती हैं, जब अटल बिहारी वाजपेयी और संघ के बीच मतभेद उभरे थे।
RSS और बीजेपी के संबंध हमेशा से जटिल रहे हैं, लेकिन उनकी वैचारिक समानता और राष्ट्रवाद की साझा भावना ने उन्हें साथ बनाए रखा है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि ये संबंध कैसे विकसित होते हैं और भारतीय राजनीति में इनका क्या प्रभाव पड़ता है।
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