Sanctuary for Khalistanis: कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि उन्होंने अपने देश को खालिस्तानियों के लिए पनाहगाह बना दिया है। भारत और कनाडा के बीच खालिस्तान मुद्दे को लेकर तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। इस लेख में हम समझेंगे कि कैसे कनाडा खालिस्तानियों की पनाहगाह बन गया, और इसका संबंध ट्रूडो परिवार से कैसे जुड़ा है।
पियरे ट्रूडो और खालिस्तान का इतिहास
1985 का कनिष्क विमान विस्फोट, जिसमें 329 लोग मारे गए थे, ने भारत-कनाडा संबंधों में बड़ा विवाद खड़ा किया था। इस विस्फोट के मास्टरमाइंड, खालिस्तानी आतंकी तलविंदर सिंह परमार, ने कनाडा खालिस्तानियों की पनाहगाह बनाते हुए वहां शरण ली थी। भारत ने उसे सौंपने की मांग की, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो ने इसे ठुकरा दिया। इस घटना ने कनाडा की धरती को खालिस्तानी गतिविधियों के लिए सुरक्षित ठिकाना बना दिया।
पियरे ट्रूडो का यह रुख उनके बेटे जस्टिन ट्रूडो के शासनकाल में भी स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। जस्टिन ट्रूडो ने भी हाल ही में भारत पर आरोप लगाए हैं कि भारत ने कनाडा में रह रहे खालिस्तानी नागरिकों को निशाना बनाया। इन आरोपों ने कनाडा और भारत के संबंध (Canada and India Relations) में और कड़वाहट घोल दी है।
जस्टिन ट्रूडो के राज में खालिस्तानियों की बढ़ती ताकत
आज, जस्टिन ट्रूडो के प्रधानमंत्री रहते हुए खालिस्तानी आतंकियों का प्रभाव और भी बढ़ गया है। कनाडा की राजनीति और व्यापार में खालिस्तानी समूहों की गहरी पैठ है। कई खालिस्तानी समर्थक संगठनों को ट्रूडो सरकार की ओर से अप्रत्यक्ष समर्थन मिलता दिखाई देता है। जस्टिन ट्रूडो ने न केवल इन खालिस्तानी समर्थकों की गतिविधियों पर चुप्पी साधी है, बल्कि भारत पर आरोप लगाकर उनके एजेंडे को भी बल दिया है।
कनाडा में खालिस्तानी विचारधारा को समर्थन मिलने का सबसे बड़ा कारण वहां की राजनीतिक संरचना और प्रवासी सिख समुदाय की मजबूती है। खालिस्तानी आतंकवाद के समर्थक अपने प्रभाव का इस्तेमाल राजनीतिक दबाव बनाने और अपने हितों को साधने में सफल हो रहे हैं। जस्टिन ट्रूडो का खालिस्तान मुद्दे पर नरम रुख इस बात को और पुख्ता करता है कि आज कनाडा खालिस्तानियों की पनाहगाह बन चुका है।
भारत-कनाडा संबंधों में तनाव और भविष्य
भारत और कनाडा के बीच का तनाव कोई नया नहीं है। 1974 में जब भारत ने परमाणु परीक्षण किए, तब कनाडा के प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो ने इसका कड़ा विरोध किया था। उन्होंने भारत के परमाणु कार्यक्रम को एक “विश्वासघात” करार दिया था। यह मतभेद तब और गहरा हो गया जब 1998 में भारत ने पोखरण में फिर से परमाणु परीक्षण किया। इसी कड़ी में हालिया घटनाएं, जैसे कनाडा में हरदीप सिंह निज्जर की हत्या और इस पर भारत के खिलाफ जस्टिन ट्रूडो के आरोपों ने कनाडा और भारत के संबंध (Canada and India Relations) को और बिगाड़ा है।
भारत ने न केवल इन आरोपों को खारिज किया, बल्कि कनाडा के कई राजनयिकों को निष्कासित कर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया भी जाहिर की। दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव ने अब यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या कनाडा और भारत के बीच संबंधों में सुधार हो पाएगा या फिर खालिस्तान मुद्दा हमेशा के लिए इन संबंधों पर एक काला साया बना रहेगा?
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