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क्या मुस्लिम समुदाय में बहन को मिलता है भाई की प्रॉपर्टी में हिस्सा? जानिए क्या कहता है मुस्लिम पर्सनल लॉ

मुस्लिम समुदाय
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मुस्लिम समुदाय: भारत विविध धर्मों का देश है, जहां हर समुदाय अपने रीति-रिवाजों और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जीवन व्यतीत करता है। विवाह, संपत्ति का बंटवारा, और उत्तराधिकार जैसे मामलों में हर धर्म का अपना पर्सनल लॉ होता है। मुस्लिम समुदाय में संपत्ति के बंटवारे और बहनों के अधिकार को लेकर अक्सर सवाल उठते हैं। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) के तहत बहनों को भाई की प्रॉपर्टी में क्या अधिकार मिलता है।

शरीयत और उत्तराधिकार का आधार
मुस्लिम समुदाय में संपत्ति के बंटवारे के लिए शरीयत एक्ट 1937 (Shariat Act 1937) लागू होता है। ये कानून यह सुनिश्चित करता है कि मृत व्यक्ति की संपत्ति उसके निकटतम उत्तराधिकारियों के बीच इस्लामिक नियमों के अनुसार बांटी जाए। मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत ये तय होता है कि संपत्ति के बंटवारे में कौन-कौन हकदार होगा और कितना हिस्सा प्राप्त करेगा।

क्या बहन को मिलती है प्रॉपर्टी?
मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो उसकी संपत्ति में उसके बेटों, बेटियों, विधवा पत्नी, और माता-पिता को हिस्सा दिया जाता है। इस कानून के तहत बेटी को बेटे के मुकाबले आधा हिस्सा मिलता है। यदि कोई बेटा नहीं है, तो संपत्ति बेटियों में समान रूप से बांटी जाती है। विधवा को पति की संपत्ति का छठा हिस्सा मिलता है। इसका मतलब ये है कि मुस्लिम प्रॉपर्टी में बहन का अधिकार (Sister’s rights in Muslim property) सुनिश्चित है, लेकिन उसका हिस्सा भाई के मुकाबले कम होता है।

हिस्सेदारी में असमानता क्यों?
मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार पुरुष को अधिक हिस्सा इसलिए दिया जाता है क्योंकि उसे परिवार की आर्थिक जिम्मेदारियां निभानी होती हैं। शादी के बाद भी मुस्लिम बहन को पिता के घर में अपने हक से रहने का अधिकार होता है। लेकिन ये भी सच है कि कई मुस्लिम महिलाएं इस असमानता को भेदभाव मानती हैं और बराबरी की हिस्सेदारी की मांग करती हैं।

शादी और तलाक के बाद बहन के अधिकार
शादी के बाद भी, अगर मुस्लिम महिला के कोई बच्चे नहीं हैं, तो उसे पिता के घर में रहने का हक है। अगर बच्चे बालिग हैं और अपनी मां की देखरेख कर सकते हैं, तो उस स्थिति में महिला को पिता के घर में हक नहीं मिलता। ये कानून परिवार के भीतर जिम्मेदारियों और रिश्तों को बनाए रखने के लिए बनाया गया है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) ये सुनिश्चित करता है कि परिवार के हर सदस्य को संपत्ति में हिस्सा मिले, लेकिन ये हिस्सेदारी समान नहीं होती। बहनों को भाई के मुकाबले कम हिस्सा मिलता है, जिसे शरीयत कानून के आर्थिक और सामाजिक तर्कों से सही ठहराया गया है। हालांकि, बदलते वक्त के साथ मुस्लिम महिलाओं की बराबरी की मांग भी बढ़ रही है।

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