बुलडोजर, देशभर में इसकी चर्चा आमतौर पर खूब होती है, क्योंकि इसका इस्तेमाल तोड़फोड़ के लिए जो किया जाता है। वैसे ये चर्चा में इसलिए भी रहता है, क्योंकि जब भी कोई अवैध निर्माण हो तो बुल्डोजर की ही मदद ली जाती है। खासकर योगी सरकार ने अवैध निर्माण को तोड़ने के लिए जिस तरह जमकर बुल्डोजर का इस्तेमाल किया है। ऐसे में ये बुलडोजर तो अपने फील्ड का सुपरस्टार ही बन गया। लेकिन क्या आपको पता है कि इस तोड़फोड़ करने वाली मशीन का इस्तेमाल किसने, कब और क्यों किया था? क्योंकि आपको बता दें कि इसका इस्तेमाल तोड़फोड़ के लिए नहीं, बल्कि किसी और काम के लिए किया गया था, जिसका अंजाम अब जाकर ये हो गया। तो आइए जानते हैं इस बुल्डोजर के दिलचस्प इतिहास को।
बुलडोजर का आविष्कार: खेती के लिए महत्वपूर्ण उपकरण
सबसे पहले तो आपको ये बता दूं कि बुलडोजर के आविष्कार को 101 साल पूरे हो गए हैं। और तब जिसने इसे बनाया उनका उद्देश्य खेती-किसानी को समृद्ध करना था। दरअसल, कई जमीनें इतनी उबड़-खाबड़ होती थीं कि उन्हें सपाट और उपजाऊ बनाना बहुत मुश्किल होता था। खेती करने वालों के लिए ये बहुत कठिनाई भरा काम था। हॉल्ट कंपनी, जो शुरुआती ट्रैक्टर बनाने में फेमस रही, ने शुरुआती बुलडोजर खेती की जमीनों को ठीक करने के लिए ही बनाया था।
जेम्स कुमिंग्स और जे अर्ल मैकलेयोड: बुलडोजर के आविष्कारक
1923 में एक किसान जेम्स कुमिंग्स और एक ड्राफ्ट्समैन जे अर्ल मैकलेयोड ने मिलकर पहले बुलडोजर का डिजाइन तैयार किया था। ये दोनों अमेरिका के कंसास में रहते थे, जहां कई जगहों पर खेती करना बहुत मुश्किल हो रहा था। उन्होंने 18 दिसंबर 1923 को पहला बुलडोजर बनाया और इसका अमेरिकी पेटेंट भी कराया, और वो पेटेंट नंबर था 1,522,378। ये पेटेंट कृषि कार्यों में ट्रैक्टर के अटैचमेंट के तौर पर हुआ था।
शुरुआती बुलडोजर: ट्रैक्टर के रूप में
स्टार्टिंग में मूलत: बुलडोजर ट्रैक्टर जैसे ही लगते थे, जिसमें अगले हिस्से में लंबी, पतली धातु की प्लेट लगी होती थी। ये प्लेट मैकेनिकल तरीके से नीचे आकर मिट्टी की खुदाई कर उसे सपाट कर देती थी। शुरुआती बुलडोजर्स में ड्राइवर के लिए केबिन नहीं होता था, बल्कि उसे खुले में ही बैठकर काम करना होता था।
बुलडोजर में सुधार: आधुनिक तकनीक
बाद में बुलडोजर्स के ब्लेड्स और पैनेपन में भी सुधार हुआ। अब जिन ब्लेड्स से तोड़फोड़ का काम होता है और मिट्टी निकालने और फेंकने का, वे यू ब्लेड्स कहलाते हैं। ये पहले तोड़फोड़ करते हैं और फिर मलबे को उठाकर फेंकते भी हैं। 1929 में अलग-अलग ब्लेड्स के साथ बुलडोजर नमूदार हुए। इन्हें तब बुलडोजर नहीं, बल्कि बुल ग्रेडर्स कहा जाता था।
खेती से सिविल कंस्ट्रक्शन तक का सफर
1930 के दशक के बीच तक आते-आते बुलडोजर खेतों और कृषि कार्यों में इस्तेमाल होने लगे। इसके ब्लेड्स को उठाने और गिराने के लिए हाइड्रॉलिक सिलिंडर्स की मदद ली गई। समय के साथ बुलडोजर्स बड़े और ताकतवर होते गए। दुनिया की कई बड़ी कंपनियां इन्हें बनाने लगीं और इनके मॉडल व काम करने के तरीके भी बदलते गए। अब तो आधुनिक बुलडोजर कई नई तकनीकों से लैस हैं, जिसमें जीपीएस जैसी तकनीक भी शामिल है।
बुलडोजर का अन्य कार्यों में उपयोग
ब्रिटेन में 1946-47 में जमकर बर्फ पड़ी। कई गांवों में सप्लाई चैन में बाधा पड़ने लगी। तब बुलडोजर की मदद ली गई। पहली बार ये देखा गया कि बुलडोजर से बर्फ हटाने का काम भी आसानी से हो सकता है। तब से बुलडोजर सड़कों पर पड़ी बर्फ हटाने और अवैध अतिक्रमण हटाने के काम में भी आने लगे।
बुलडोजर बनाने वाली प्रमुख कंपनियां
दुनिया में बुलडोजर बनाने में कैटरपिलर, कोमात्सु, लिब्हर, केज और जॉन डीरे जैसी कंपनियां आगे हैं। बुलडोजर का विकास कृषि कार्यों की तुलना में सिविल कंस्ट्रक्शन के कामों में ज्यादा हुआ है। दुनियाभर में सैन्य निर्माण इकाइयां इनका खूब इस्तेमाल करती हैं।
भारत में बुलडोजर की कीमत
भारत में आमतौर पर बुलडोजर के दाम करीब 10 लाख रुपए से शुरू होते हैं। ज्यादातर बुलडोजर दूसरे देशों से आयात होते हैं या टाटा और अन्य बड़ी कंपनियां विदेशी तकनीक के सहयोग से इन्हें देश में ही तैयार करती हैं। बुलडोजर के दाम मॉडल, कंपनी और खासियतों पर निर्भर करते हैं और ये 50 लाख रुपए या इससे ज्यादा तक भी हो सकते हैं।
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