दिल्ली के कोटला मुबारकपुर इलाके की गलियां जितनी तंग हैं, उससे कहीं बड़े सपने यहां पलते हैं। ये है ‘कोटला फैक्ट्री’, जहां देशभर से आए युवा दिन-रात मेहनत करते हैं ओलंपिक पदक के ख्वाब के साथ।
कोटला में जगह-जगह छोटे कमरे हैं, जहां बुलंदशहर से आए धावक, हरियाणा के गांवों से निकले पहलवान, और देश के कोने-कोने से आए खिलाड़ी कड़ी मेहनत में जुटे रहते हैं। लेकिन, इनमें से बहुत कम को ही वो सफलता और पहचान मिल पाती है, जिसके वे हकदार हैं।
दिन में ये युवा अपनी खेल की प्रैक्टिस करते हैं, और रात में, जैसे-तैसे काम करके अपना खर्च निकालते हैं। गार्ड की नौकरी हो या किसी कंपनी का काम – सब कुछ चलता है। यहां संघर्ष सिर्फ शरीर का नहीं, मन का भी है।
इन खिलाड़ियों के दिलों में लगन तो बहुत है, पर साथ की कमी खलती है। सही सुविधाएं नहीं, कई बार ढंग का खाना भी नहीं मिल पाता। फिर भी, इन्हीं गलियों से निकलकर कुछ खिलाड़ी देश का नाम रोशन भी करते हैं।
कोटला फैक्ट्री हमारे देश के छिपे हुए संघर्ष की कहानी कहती है। यह दिखाती है कि प्रतिभा हर जगह होती है, लेकिन उसे पहचानने और निखारने के लिए एक व्यवस्था भी चाहिए।