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कड़ाके की ठंड में भी कैसे नंगे बदन रहते हैं नागा साधु? जानें क्या है इसका राज

नागा साधु
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प्रयागराज महाकुंभ का नजारा अत्यंत भव्य होता है। यहां हर तरफ श्रद्धालु, साधु-संत, और नागा साधु दिखाई देते हैं। कड़ाके की ठंड में भी नागा साधु नंगे बदन घूमते हुए संगम में डुबकी लगाते हैं। आखिर ऐसा कैसे संभव है कि ये साधु ठंड का कोई प्रभाव नहीं महसूस करते? ये सवाल हर किसी के मन में आता है। इस लेख में, हम इस रहस्य से पर्दा उठाएंगे।

कठोर तपस्या और साधना का असर (Effect of Severe Austerity and Meditation)
नागा साधुओं का जीवन कठोर तपस्या और साधना का प्रतीक है। ये तपस्या उनके शरीर को चरम स्थितियों में ढालने का माध्यम है। लंबे समय तक ध्यान और योग का अभ्यास उन्हें शारीरिक और मानसिक नियंत्रण में सक्षम बनाता है। ठंड और गर्मी जैसी स्थितियों का प्रभाव उनके शरीर पर न्यूनतम हो जाता है।

यही नहीं, योग की कुंडलिनी जागरण प्रक्रिया के माध्यम से ये साधु अपने शरीर में ऊर्जा प्रवाहित करते हैं। इस ऊर्जा से शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है, जो ठंड से बचाने का काम करती है। प्राणायाम और नाड़ी शोधन जैसी तकनीकें रक्त संचार को बढ़ाती हैं, जिससे शरीर ठंड का सामना कर पाता है।

भस्म का रहस्य (The Secret of Ash)
नागा साधु अपने शरीर पर भस्म (राख) लगाते हैं, जो ठंड से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भस्म को प्राकृतिक इंसुलेटर माना जाता है, जो शरीर को गर्म रखने में मदद करता है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए, तो भस्म में मौजूद खनिज शरीर की गर्मी को बनाए रखने में सहायक होते हैं।

धार्मिक दृष्टि से, भस्म को पवित्र माना जाता है। ये न केवल साधुओं को आध्यात्मिक शुद्धता प्रदान करती है, बल्कि नकारात्मक ऊर्जा से भी बचाती है। शिवभक्त नागा साधु इसे भगवान शिव के प्रति समर्पण का प्रतीक मानते हैं।

सात्विक खानपान और जीवनशैली (Simple Diet and Lifestyle)
नागा साधुओं की खानपान और जीवनशैली भी उन्हें ठंड का सामना करने में सहायक होती है। उनका आहार सात्विक और पोषण युक्त होता है, जो शरीर को मजबूत और रोगमुक्त बनाए रखता है। साधुओं का सरल और तपस्वी जीवन उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से अत्यधिक दृढ़ बनाता है।

मानसिक दृढ़ता और साधना का योगदान (Role of Mental Strength and Meditation)
नागा साधु सांसारिक मोह-माया से दूर रहते हैं। उनका जीवन मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से प्रेरित होता है। मानसिक दृढ़ता के कारण वे शारीरिक सुख-दुख का अनुभव कम करते हैं। ध्यान और मंत्र जाप के माध्यम से वे अपनी आंतरिक ऊर्जा को नियंत्रित कर ठंड जैसी परिस्थितियों से बच पाते हैं।

शरीर की अनुकूलन क्षमता (Adaptability of the Human Body)
मानव शरीर में चरम स्थितियों के अनुसार ढलने की अद्भुत क्षमता होती है। नागा साधुओं का कठोर जीवन इस अनुकूलन का सबसे अच्छा उदाहरण है। वर्षों की तपस्या और साधना से उनका शरीर ठंड जैसी परिस्थितियों को सहन करने के लिए प्रशिक्षित हो जाता है।

नागा साधुओं से प्रेरणा (Inspiration from Naga Sadhus)
नागा साधुओं का जीवन मानव शरीर और मन की असीम क्षमता को दर्शाता है। वे हमें सिखाते हैं कि ध्यान, साधना, और दृढ़ इच्छाशक्ति के माध्यम से हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं। उनके जीवन से हमें ये प्रेरणा मिलती है कि मानसिक और शारीरिक शक्ति के संयोजन से असंभव भी संभव हो सकता है।

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