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Mahakumbh Mela 2025: कैसे तय होती है महाकुंभ मेले की तारीख और स्थान?

Mahakumbh Mela 2025: कैसे तय होती है महाकुंभ मेले की तारीख और स्थान?

महाकुंभ मेला (Mahakumbh Mela) दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजन है। इस मेले में देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं, जो पवित्र नदियों में स्नान कर अपने पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति का विश्वास रखते हैं। यह मेला हर 12 साल में आयोजित होता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसकी तारीख और स्थान कैसे तय होते हैं? आइए इस अद्भुत मेले से जुड़े ज्योतिषीय और पौराणिक रहस्यों को विस्तार से समझते हैं।


महाकुंभ हर 12 साल में ही क्यों?

महाकुंभ मेले का आयोजन हर 12 साल में होता है, और इसके पीछे एक रोचक पौराणिक कथा है। माना जाता है कि देवताओं और असुरों के बीच अमृत कलश (Nectar Pot) को लेकर 12 दिवसीय युद्ध हुआ था। देवताओं के ये 12 दिन, मानव के 12 वर्षों के बराबर माने जाते हैं। इसीलिए महाकुंभ मेले का आयोजन हर 12 साल में किया जाता है।

इसके अलावा, जब बृहस्पति ग्रह (Jupiter) मीन राशि में प्रवेश करते हैं, तो महाकुंभ मेले का आयोजन होता है। यह समय ज्योतिषीय दृष्टि से बेहद शुभ और आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा माना जाता है।


कुंभ मेले की तारीख और स्थान कैसे तय होते हैं?

कुंभ मेला (Kumbh Mela) की तारीख और स्थान ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर तय होते हैं। सूर्य और बृहस्पति ग्रह की स्थिति इस आयोजन की तारीख और जगह को निर्धारित करती है।

1. प्रयागराज (गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम):

जब बृहस्पति वृषभ राशि में और सूर्य मकर राशि में आते हैं, तब कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में होता है।

2. हरिद्वार (गंगा नदी के किनारे):

जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में होते हैं, तब हरिद्वार में कुंभ मेला आयोजित किया जाता है।

3. नासिक (गोदावरी नदी के किनारे):

जब बृहस्पति और सूर्य सिंह राशि में गोचर करते हैं, तब नासिक में कुंभ मेला होता है।

4. उज्जैन (शिप्रा नदी के किनारे):

जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में होते हैं, तो कुंभ का आयोजन उज्जैन में होता है।

इस तरह, ग्रहों की स्थिति और ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर मेले की तारीख और स्थान तय किए जाते हैं।


महाकुंभ मेला: भारत के चार पवित्र स्थान

महाकुंभ मेला भारत के चार पवित्र स्थानों पर आयोजित होता है। यह आयोजन सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

  1. प्रयागराज:
    यहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों का संगम होता है। इसे त्रिवेणी संगम कहा जाता है और यह स्थान आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण माना जाता है।
  2. हरिद्वार:
    यहां गंगा नदी पहाड़ों से निकलकर मैदानों में प्रवेश करती है। हरिद्वार का कुंभ मेला गंगा स्नान के लिए अत्यधिक शुभ माना जाता है।
  3. उज्जैन:
    मध्य प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे कुंभ का आयोजन होता है। इसे मोक्ष प्राप्ति के लिए अद्वितीय स्थान माना जाता है।
  4. नासिक:
    महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी के किनारे कुंभ मेला आयोजित होता है। इसे पापों से मुक्ति और आध्यात्मिक शुद्धि का स्थान माना गया है।

धर्म और ज्योतिष का संगम

महाकुंभ मेला न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह ज्योतिष और भारतीय संस्कृति का अनोखा संगम भी है। यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर सूची में शामिल किया है। श्रद्धालुओं का मानना है कि कुंभ के दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने से आत्मा शुद्ध होती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

महाकुंभ 2025 (Mahakumbh 2025) प्रयागराज में आयोजित किया जाएगा। इस आयोजन के दौरान करोड़ों लोग एकत्रित होंगे, जो इसे दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम बनाता है।


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