महाराष्ट्र

नांदेड में मराठी भाषा विवाद: हिंदी में मांगा 5 रुपया, तो मारपीट के बाद माफी मांगने के लिए किया मजबूर

मराठी

महाराष्ट्र के नांदेड जिले से एक हैरान करने वाली खबर सामने आई है, जहां एक पब्लिक टॉयलेट में मराठी भाषा को लेकर बवाल मच गया। मामला इतना बढ़ा कि बहस शुरू हुआ, फिर विवाद मारपीट और जबरन माफी तक जा पहुंचा। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर धूम मचा रहा है और लोग इसे लेकर तरह-तरह की बातें कर रहे हैं। आइए, जानते हैं क्या है पूरा मामला।

हिंदी में पैसे मांगे, तो भड़क गया युवक
बात तब शुरू हुई जब एक युवक नांदेड के एक पब्लिक टॉयलेट में गया। वहां टॉयलेट ऑपरेटर ने उससे 5 रुपये शुल्क मांगा, वो भी हिंदी में। बस, यहीं से मामला गर्म हो गया। युवक ने तुरंत आपत्ति जताई और कहा, “यहां महाराष्ट्र है, मराठी में बात करो, क्योंकि मराठी ही हमारी राजभाषा है।” ऑपरेटर ने जवाब दिया कि उसे मराठी नहीं आती। इस बात पर युवक का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। उसने तुरंत अपने फोन से ऑपरेटर का वीडियो बनाया और उसे महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के कार्यकर्ताओं को भेज दिया।

मनसे कार्यकर्ताओं ने की मारपीट, मंगवाई माफी
वीडियो देखते ही मनसे के कुछ कार्यकर्ता मौके पर पहुंच गए। फिर क्या, ऑपरेटर के साथ उनकी तीखी बहस शुरू हो गई। मामला इतना बढ़ गया कि कार्यकर्ताओं ने कथित तौर पर ऑपरेटर के साथ मारपीट की और उसे कैमरे के सामने माफी मांगने के लिए मजबूर किया। वायरल वीडियो में ऑपरेटर को डरते-सहमते माफी मांगते देखा जा सकता है। वो कहता है, “मुझे मराठी नहीं आती, लेकिन अब मैं इसे सीखने की कोशिश करूंगा।” ये वीडियो अब सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल रहा है।

 

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सोशल मीडिया पर बंटी राय, पुलिस ने शुरू की जांच
इस घटना ने लोगों को दो खेमों में बांट दिया है। कुछ लोग मराठी भाषा के सम्मान की बात कर रहे हैं और इसे महाराष्ट्र की संस्कृति का हिस्सा बता रहे हैं। वहीं, कुछ इसे भाषा के नाम पर गुंडागर्दी और जबरदस्ती का मामला बता रहे हैं। सोशल मीडिया पर बहस छिड़ी हुई है कि आखिर भाषा को लेकर इतना हंगामा क्यों?

पुलिस ने इस मामले में जांच शुरू कर दी है। अभी तक किसी के खिलाफ FIR दर्ज नहीं हुई है, लेकिन पुलिस का कहना है कि वायरल वीडियो के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।

क्या है इस विवाद का असली मोल?
ये घटना एक बार फिर भाषा और क्षेत्रीय अस्मिता के सवाल को सामने ला रही है। क्या भाषा का सम्मान इस तरह से करवाना सही है? या फिर ये महज एक बहाना है अपनी ताकत दिखाने का? आप इस बारे में क्या सोचते हैं? अपनी राय हमें जरूर बताएं!

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