क्या आपने कभी सोचा है कि अंतिम संस्कार की पारंपरिक प्रथा में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है? केरल से एक ऐसी खबर आई है जो इस पवित्र परंपरा को एक नई दिशा दे रही है। त्रिशूर में एक स्टार्टअप ने चलता-फिरता श्मशान (Mobile Walking Crematorium) बनाया है, जो न केवल अनोखा है, बल्कि समय की एक बड़ी मांग को भी पूरा करता है।
नवीन तकनीक का अनूठा समागम
चलता-फिरता श्मशान (Mobile Walking Crematorium) की यह अभिनव पहल कैसे शुरू हुई, यह एक दिलचस्प कहानी है। मैन ऑफ स्टील स्टार्टअप के संस्थापक बिजू पॉलोस ने एक दिन अपने एक मित्र से श्मशान भूमि की कमी के बारे में सुना। उन्होंने सोचा – “क्यों न हम श्मशान को लोगों के पास ले जाएं?” यही सोच आज एक क्रांतिकारी आविष्कार का रूप ले चुकी है।
अंतरिक्ष से धरती तक की यात्रा
क्या आप जानते हैं कि इस मोबाइल श्मशान में वही धातु का इस्तेमाल किया गया है जो अंतरिक्ष यान में होती है? यह विशेष जर्मन धातु, स्टेनलेस स्टील और क्रोमियम का एक अनूठा मिश्रण है। इस आधुनिक अंत्येष्टि का नया युग (New Era of Modern Cremation) शुरू करने वाली मशीन में कई आश्चर्यजनक विशेषताएं हैं।
तकनीकी चमत्कार की अनोखी कहानी
इस यूनिट में लगी अत्याधुनिक गैस लाइन प्रणाली एक इंजीनियरिंग का कमाल है। सोचिए, मात्र कुछ सेकंड में तापमान 1,300 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है! यह कैसे संभव है? इसके पीछे की तकनीक इतनी उन्नत है कि इसमें विशेष ब्लोअर्स और बर्नर्स का इस्तेमाल किया गया है, जो न्यूनतम ऊर्जा में अधिकतम तापमान प्रदान करते हैं।
एक अनोखी यात्रा: घर से आकाश तक
क्या आप जानते हैं कि यह पूरी यूनिट सिर्फ 160 किलोग्राम की है? इसे चार छोटे हिस्सों में बांटा जा सकता है, जिससे इसे पहाड़ी इलाकों से लेकर तटीय क्षेत्रों तक आसानी से ले जाया जा सकता है। एक अंतिम संस्कार के लिए मात्र 7 किलोग्राम गैस की जरूरत होती है, और पूरी प्रक्रिया 45 मिनट में संपन्न हो जाती है।
पर्यावरण की सुरक्षा का ध्यान
इस यूनिट की सबसे खास बात यह है कि यह पर्यावरण के अनुकूल है। क्या आप जानते हैं कि पारंपरिक श्मशान की तुलना में यह 70% कम प्रदूषण फैलाता है? न धुआं, न धूल – बस एक स्वच्छ और सम्मानजनक अंतिम संस्कार।
समाज पर प्रभाव और भविष्य की संभावनाएं
केरल के पूर्व एलएसजीडी सचिव टीके जोस का मानना है कि यह आविष्कार एक गेम-चेंजर साबित होगा। विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां:
- भूमि की कमी है
- पहाड़ी इलाके हैं
- जल स्तर ऊंचा है
- आबादी घनी है
व्यावहारिक उपयोग और सफलता की कहानियां
विजयवाड़ा में पहले ही 20 मोबाइल यूनिट्स की सफल तैनाती हो चुकी है। लोगों का अनुभव बताता है कि यह न केवल सुविधाजनक है, बल्कि आर्थिक रूप से भी किफायती है। महामारी जैसी आपातकालीन स्थितियों में इसकी उपयोगिता और भी बढ़ जाती है।
भविष्य की राह
यह नवाचार सिर्फ एक शुरुआत है। केरल के इस स्टार्टअप की योजना है कि वे इस तकनीक को और भी बेहतर बनाएं। सौर ऊर्जा से चलने वाले मॉडल की योजना पहले से ही विकास के चरण में है।
आखिरी सोच
क्या यह आविष्कार भारत के अन्य राज्यों में भी अपनी जगह बना पाएगा? क्या यह परंपरा और आधुनिकता का सही संगम है? ये सवाल समय के साथ जवाब पाएंगे, लेकिन एक बात तय है – केरल का यह नवाचार अंतिम संस्कार की प्रथा में एक नया अध्याय जोड़ रहा है।
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