Mumbai-Vadodara Expressway: मुंबई-वडोदरा रोड प्रोजेक्ट (Mumbai-Vadodara Expressway) को लेकर चौंकाने वाली खबर सामने आ रही है. मुंबई से वडोदरा तक के ट्रांसपोर्टेशन को सुगम और अधिक सुविधाजनक बनाने के लिए शुरू किया गया यह प्रोजेक्ट अब भ्रष्टाचार के मामलों में लिप्त हो चूका है. दरअसल वर्तमान में जेएनपीटी पोर्ट मुंबई से वडोदरा के बीच की दूरी लगभग 550 किलोमीटर है जिसमें यात्रा का समय लगभग 10-11 घंटे लगता है. मुंबई वडोदरा एक्सप्रेसवे के निर्माण से दूरी घटकर मात्र 379 किलोमीटर (वर्तमान दूरी से लगभग 170 किलोमीटर कम) रह जाएगी. इसके साथ ही, एक्सप्रेसवे बनने के कारण मुंबई से वडोदरा तक की यात्रा केवल 3.5 से 5 घंटों में तय की जा सकेगी, जिससे बड़ी मात्रा में ईंधन और परिवहन लागत की बचत होगी.

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11 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी
भिवंडी तालुका के कई गांवों की कृषि भूमि एक चल रही परियोजना से प्रभावित हुई है। जबकि भूस्वामियों को बाजार मूल्यों के आधार पर पर्याप्त मुआवजा मिल रहा है, इन निधियों के वितरण में भ्रष्टाचार के मामले सामने आए हैं। शुरुआती घटना में खुद को किसान बताने वाले व्यक्तियों द्वारा फर्जी दावे शामिल थे, जिसके परिणामस्वरूप 11 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी हुई। इसके बाद एक बुजुर्ग आदिवासी महिला पर मुआवजे के सिलसिले में 58 लाख रुपये की धोखाधड़ी का आरोप लगा.
किसानों का हुआ शोषण, 16 करोड़ की हुई धोखाधड़ी
इन्हीं घटनाओं की कड़ी में धोखाधड़ी का तीसरा मामला सामने आया है, जिसमें भू-माफिया द्वारा किसानों का शोषण कर 16 करोड़ रुपये की रकम हड़पने का मामला सामने आया है. इससे परेशान होकर प्रभावित किसान अब उपखण्ड अधिकारी कार्यालय में न्याय की गुहार लगा रहे हैं. मिली जानकारी के अनुसार, तालुका के मौजे वडापे में स्वर्गीय द्वारकाबाई काशीनाथ पाटिल की 13 एकड़ जमीन में से छह को मुंबई-वडोदरा सड़क परियोजना में शामिल किया गया है. द्वारकाबाई पाटिल के निधन के बाद, उनके बेटे और बेटियां, कुल नौ उत्तराधिकारी, आधिकारिक तौर पर सात-बारह रिकॉर्ड में दर्ज हैं.

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दावा किया गया है कि द्वारकाबाई का बेटा हरिभाई अपनी बहनों हीराबाई, ताराबाई, रमाबाई और जीजाबाई से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) प्राप्त करके धोखाधड़ी गतिविधियों में शामिल था। इसके अतिरिक्त, यह आरोप लगाया गया है कि मृतक के भाई रामदास ने दान के माध्यम से जमीन अपने बेटे बालकृष्ण के नाम कर दी.
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जालसाजी तब सामने आई जब हरिभाई ने इसमें शामिल अन्य पक्षों की जानकारी के बिना देवराज महात्रे को जमीन बेचने की साजिश रची. बदले में देवराज ने जमीन निखिल राधेश्याम अग्रवाल के नाम पर हासिल कर ली. वित्तीय लेनदेन में हरिभाऊ को रुपये प्राप्त हुए 5.01 करोड़, देवराज को रु. 3.88 करोड़, निखिल को रु. 6.28 करोड़, और वैशाली लक्ष्मण पाटिल को 54.40 रुपये का भुगतान किया गया.
हालांकि, धोखाधड़ी का खुलासा तब हुआ जब ज़मीन के वारिसों को एक पत्र मिला जिसमें उन्हें राशि जमा करने का निर्देश दिया गया. इसी समय किसान के परिवार को एहसास हुआ कि वे घोटाले का शिकार हो गए हैं. इसके बाद प्रभावित किसान पिछले दो वर्षों से उपखण्ड अधिकारी से न्याय की गुहार लगा रहे हैं.































