OBC Reservation Maharashtra Dispute Deepens: महाराष्ट्र में आरक्षण का मुद्दा हमेशा से एक संवेदनशील और जटिल विषय रहा है। हाल ही में, राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ ने गड़चिरोली, चंद्रपुर और यवतमाल जैसे जिलों में ओबीसी आरक्षण (OBC reservation/ओबीसी आरक्षण) में कटौती और सामाजिक व शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग (SEBC reservation/एसईबीसी आरक्षण) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण लागू करने के सरकार के फैसले के खिलाफ तीखा विरोध जताया है। यह मुद्दा न केवल सामाजिक न्याय की बात करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे सरकारी नीतियां विभिन्न समुदायों के बीच तनाव को बढ़ा सकती हैं।
गड़चिरोली में राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ के पदाधिकारियों ने जिलाधिकारी कार्यालय पहुंचकर एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री सहित कई मंत्रियों को इस मुद्दे पर चेतावनी दी गई। महासंघ का कहना है कि अगर ओबीसी आरक्षण (OBC reservation/ओबीसी आरक्षण) में किसी भी तरह की छेड़छाड़ की गई, तो इसका गंभीर परिणाम होगा। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि महायुति सरकार को आगामी चुनावों में इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है। इस ज्ञापन में शामिल लोग, जैसे प्रो. शेषराव येलेकर, दादाजी चौधरी और डॉ. सुरेश लडके, ने सरकार से मांग की कि ओबीसी समुदाय के साथ किसी भी तरह का अन्याय न किया जाए।
यह विवाद तब शुरू हुआ जब सरकार ने आदिवासी बहुल जिलों में अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षण को 7 प्रतिशत से बढ़ाकर 24 प्रतिशत करने का फैसला किया। इस नीति के तहत गड़चिरोली, चंद्रपुर, यवतमाल, नाशिक, धुले, नंदुरबार, रायगड़ और पालघर जैसे आठ जिलों में ओबीसी, एनटी, वीजेए और एसबीसी वर्गों के आरक्षण में कटौती की गई। उदाहरण के लिए, गड़चिरोली में ओबीसी आरक्षण को 17 प्रतिशत से घटाकर 6 प्रतिशत, चंद्रपुर में 19 प्रतिशत से 11 प्रतिशत और यवतमाल में 17 प्रतिशत से 14 प्रतिशत कर दिया गया। इसके अलावा, 9 जून 2014 के एक अधिनियम के अनुसार, पेसा क्षेत्रों में ग्रुप क और ड के 17 संवर्गीय पदों पर 100 प्रतिशत आदिवासी उम्मीदवारों की भर्ती अनिवार्य कर दी गई, जिससे ओबीसी और अन्य वर्गों के लिए अवसर पूरी तरह खत्म हो गए।
इससे पहले, महाविकास आघाड़ी सरकार ने 3 जनवरी, 2022 को छगन भुजबल की अध्यक्षता में एक उपसमिति गठित की थी, जिसने नई बिंदू नामावली जारी की थी। इसके तहत नाशिक, धुले, नंदुरबार और पालघर में 15 प्रतिशत, यवतमाल में 17 प्रतिशत, चंद्रपुर में 19 प्रतिशत और गड़चिरोली में 17 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण तय किया गया था। लेकिन अब सरकार द्वारा सामाजिक व शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्ग (SEBC reservation/एसईबीसी आरक्षण) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की योजना ने एक बार फिर ओबीसी समुदाय को नाराज कर दिया है। महासंघ का कहना है कि गड़चिरोली जैसे जिलों में एसईबीसी की जनसंख्या नगण्य है, फिर भी ओबीसी के हिस्से को कम करके यह आरक्षण लागू किया जा रहा है।
यह नीति इसलिए और विवादास्पद है क्योंकि यह स्थानीय ओबीसी समुदाय के अवसरों को सीमित कर रही है। महासंघ ने अपने ज्ञापन में बताया कि जब राज्य के किसी भी जिले का उम्मीदवार अन्य जिले में नौकरी के लिए आवेदन कर सकता है, तो स्थानीय ओबीसी उम्मीदवारों के लिए अवसर और कम हो जाते हैं। गड़चिरोली, चंद्रपुर और यवतमाल जैसे जिलों में पहले से ही सीमित संसाधनों और अवसरों के बीच यह कटौती ओबीसी समुदाय के लिए बड़ा झटका है। इन क्षेत्रों में रहने वाले लोग, जो ज्यादातर खेती और छोटे-मोटे व्यवसायों पर निर्भर हैं, पहले से ही आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। ऐसे में, सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण उनके लिए एक महत्वपूर्ण सहारा है।
राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ ने इस मुद्दे पर कई बार आंदोलन किए हैं। इन आंदोलनों ने सरकार को मजबूर किया था कि वह ओबीसी समुदाय की मांगों पर ध्यान दे। लेकिन अब एसईबीसी के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की योजना ने एक बार फिर तनाव को बढ़ा दिया है। महासंघ ने चेतावनी दी कि अगर ओबीसी समुदाय के साथ अन्याय हुआ, तो पूरे महाराष्ट्र में व्यापक आंदोलन छेड़ा जाएगा। इस आंदोलन में न केवल ओबीसी संगठन, बल्कि अन्य समविचारी समूह भी शामिल हो सकते हैं। गड़चिरोली में सौंपे गए ज्ञापन में यह भी कहा गया कि सरकार को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए, क्योंकि यह सामाजिक न्याय और समानता का सवाल है।