महाराष्ट्र के पालघर जिले से एक बेहद दुखद मामला सामने आया है, जिसने स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा और अनुशासन के नाम पर होने वाली कठोरता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यहां 13 वर्षीय छात्रा अंशिका की मौत उस सजा के बाद हो गई, जो उसे स्कूल देर से पहुंचने पर दी गई थी। घटना के सामने आते ही पूरे क्षेत्र में आक्रोश फैल गया है और पुलिस ने जिम्मेदार शिक्षिका को गिरफ्तार कर लिया है।
क्या हुआ था पालघर में?
मिली जानकारी के अनुसार, अंशिका रोज़ की तरह स्कूल जा रही थी, लेकिन उस दिन वो कुछ देर से पहुंची। इस पर कक्षा की शिक्षिका नाराज हो गईं और कथित तौर पर टीचर ने उसे 100 उठक-बैठक लगाने के लिए कहा। बताया जा रहा है कि बच्ची की तबीयत पहले ही थोड़ी खराब थी, ऐसे में 100 बार उठक-बैठक करना वो सहन नहीं कर पाई और सजा के दौरान उसकी तबीयत ज्यादा खराब हो गई और वो बेहोश होकर गिर गई। स्कूल प्रबंधन उसे तुरंत अस्पताल ले गया, लेकिन डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
परिजनों का दर्द और आरोप
छात्रा की मौत के बाद परिवार सदमे में है। परिजनों ने आरोप लगाया है कि स्कूल प्रशासन ने घटना की सही जानकारी छिपाने की कोशिश की और उन्हें समय पर इलाज भी नहीं मिला। परिवार ने शिक्षिका और स्कूल प्रबंधन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
पुलिस की कार्रवाई
मामले की गंभीरता को देखते हुए पालघर पुलिस ने तुरंत जांच शुरू की। प्रारंभिक जांच में ये स्पष्ट हुआ कि छात्रा को सजा दी गई थी, जिसके बाद उसकी तबीयत बिगड़ी। पुलिस ने शिक्षिका को गिरफ्तार कर लिया है और उस पर गैर-इरादतन हत्या सहित कई गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है। साथ ही स्कूल के अन्य कर्मचारियों से भी पूछताछ की जा रही है।
स्कूलों में सुरक्षा पर बड़ा सवाल
ये घटना केवल एक परिवार का दर्द नहीं, बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र के लिए एक चेतावनी है। अनुशासन के नाम पर बच्चों के साथ कठोरता अपनाना या शारीरिक सजा देना कानूनन अपराध है। बावजूद इसके, कई जगह ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं। ये सवाल उठता है कि स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन और कितनी सख्ती दिखाएगा?
समाज में बढ़ता आक्रोश
घटना के बाद स्थानीय लोगों में गहरा आक्रोश है। कई सामाजिक संगठनों ने इस मामले को मानवाधिकारों का उल्लंघन बताते हुए कड़ी कार्रवाई और स्कूलों में सुरक्षा मानकों को और मजबूत करने की मांग की है।
पालघर की छात्रा अंशिका की मौत एक ऐसी त्रासदी है, जिसे टाला जा सकता था। ये घटना हमें याद दिलाती है कि बच्चों की सुरक्षा और संवेदनशीलता शिक्षा व्यवस्था की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। इस मामले की निष्पक्ष जांच और सख्त कार्रवाई ही पीड़ित परिवार को न्याय दिला सकती है और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोक सकती है।
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