Political Battle in Maharashtra: महाराष्ट्र की राजनीति इन दिनों बेहद दिलचस्प मोड़ पर है। एक तरफ चुनावी गठबंधन है तो दूसरी तरफ बयानों की जंग। योगी आदित्यनाथ के एक बयान ने महायुति में हलचल मचा दी है, जिससे सियासी गलियारों में नई बहस छिड़ गई है।
सियासी माहौल का उबाल महाराष्ट्र में सियासी संग्राम अब नए मोड़ पर पहुंच गया है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा के स्टार प्रचारक योगी आदित्यनाथ के ‘बटेंगे तो कटेंगे’ वाले बयान ने सियासी पारा चढ़ा दिया है। महाराष्ट्र में सियासी संग्राम (Political Battle in Maharashtra) की आंच अब गठबंधन के भीतर तक पहुंच गई है, जहां अजित पवार और उनकी पार्टी के नेता खुलकर विरोध कर रहे हैं।
गठबंधन में बढ़ती दरार का सच योगी आदित्यनाथ के बयान के बाद अजित पवार ने जो प्रतिक्रिया दी, वह महज एक राजनीतिक बयान नहीं था। उन्होंने महाराष्ट्र की अस्मिता और स्वाभिमान की बात की। छत्रपति शिवाजी महाराज, राजर्षि शाहू महाराज और महात्मा फुले जैसे महापुरुषों का जिक्र करते हुए उन्होंने स्पष्ट संदेश दिया कि महाराष्ट्र की तुलना किसी अन्य राज्य से नहीं की जा सकती।
मुस्लिम वोटरों का समीकरण अजित पवार और भाजपा में बढ़ती दूरियां (Growing Distance Between Ajit Pawar and BJP) का एक बड़ा कारण मुस्लिम वोटरों का समीकरण भी है। लोकसभा चुनाव में अजित पवार को करारा झटका लगा था जब उनके परंपरागत मुस्लिम वोटर शरद पवार के साथ चले गए। इस बार वे कोई जोखिम नहीं लेना चाहते। योगी आदित्यनाथ के बयान का विरोध करके वे अपने मुस्लिम वोटरों को यह संदेश देना चाहते हैं कि वे उनकी चिंताओं को समझते हैं।
रणनीतिक चाल का खेल एनसीपी के वरिष्ठ नेता प्रफुल्ल पटेल ने भी योगी के बयान को जुमला बताकर एक बड़ा राजनीतिक संदेश दिया है। वे यह स्पष्ट कर रहे हैं कि महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री का चेहरा कोई एक पार्टी तय नहीं करेगी, बल्कि यह फैसला सभी गठबंधन सहयोगी मिलकर करेंगे। यह बयान भी गठबंधन में बराबरी के रिश्ते की मांग करता है।
चुनावी समीकरण का विश्लेषण महाराष्ट्र के राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि अजित पवार की यह रणनीति दोहरी है। एक तरफ वे भाजपा के साथ गठबंधन में हैं, जिससे उन्हें सरकार में भागीदारी और संगठनात्मक लाभ मिल रहा है। दूसरी तरफ वे कुछ मुद्दों पर भाजपा से अलग राय रखकर अपने पारंपरिक वोट बैंक को संदेश दे रहे हैं कि वे अपनी विचारधारा से समझौता नहीं कर रहे हैं।
क्षेत्रीय राजनीति का महत्व महाराष्ट्र की राजनीति में क्षेत्रीय अस्मिता का मुद्दा हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है। अजित पवार ने इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए योगी आदित्यनाथ को बाहरी बताया है। उनका कहना है कि दूसरे राज्यों के नेता जब महाराष्ट्र आते हैं तो वे अपने राज्य की राजनीति के चश्मे से देखते हैं, जो महाराष्ट्र की राजनीतिक और सामाजिक वास्तविकताओं के साथ मेल नहीं खाता।
अगामी चुनाव का महत्व 20 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि अजित पवार की यह रणनीति कितनी कारगर साबित होती है। क्या वे अपने पारंपरिक वोट बैंक को बचाए रख पाएंगे या फिर भाजपा के साथ गठबंधन का खामियाजा भुगतना पड़ेगा। महाराष्ट्र की जनता के सामने एक जटिल राजनीतिक समीकरण है, जिसमें नेताओं की दोहरी भूमिका को समझना और उसके आधार पर निर्णय लेना होगा।