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Popcorn Brain: हर पिंग, हर नोटिफिकेशन, कैसे दिमाग को नुकसान पहुंचा रहा ‘पॉपकॉर्न ब्रेन’?

Popcorn Brain Problem

The Rise Of ‘Popcorn Brain’: आज के समय में मोबाइल और लैपटॉप के बिना जिंदगी की कल्पना करना मुश्किल हो गया है। हर पिंग, हर नोटिफिकेशन और स्क्रीन पर चमकते संदेश हमें बार-बार इन गैजेट्स की ओर खींचते हैं। लेकिन इस लगातार डिजिटल जुड़ाव का एक गंभीर साइड इफेक्ट सामने आ रहा है, जिसे “पॉपकॉर्न ब्रेन” (Popcorn Brain) कहा जाता है। यह समस्या हमारी मेंटल हेल्थ, प्रोडक्टिविटी और जीवनशैली पर बुरा असर डाल रही है।

‘पॉपकॉर्न ब्रेन’ क्या है?

‘पॉपकॉर्न ब्रेन’ की परिभाषा सबसे पहले यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन के वैज्ञानिक डेविड एम. लेवी (David M. Levy) ने दी थी। यह नाम डिजिटल दुनिया के लगातार पॉपिंग नोटिफिकेशन और दिमाग को मिलने वाले डोपामाइन हिट्स (Dopamine Hits) से प्रेरित है।

जब हम सोशल मीडिया, मैसेजिंग ऐप्स या लाइव स्ट्रीमिंग का इस्तेमाल करते हैं, तो हर लाइक, हर कमेंट, और हर नया कंटेंट हमारे दिमाग को एक त्वरित खुशी का एहसास देता है। यह खुशी अस्थायी होती है, लेकिन दिमाग इसे बार-बार पाने के लिए लालायित रहता है। यह प्रक्रिया हमें गहरी सोच और धीमे कामों पर फोकस करने से दूर कर देती है।

‘पॉपकॉर्न ब्रेन’ कैसे बनता है?

“पॉपकॉर्न ब्रेन” (Popcorn Brain) तब विकसित होता है, जब हमारा दिमाग नयापन और उत्तेजना पाने का आदी हो जाता है। हर नोटिफिकेशन और पिंग हमारे दिमाग को जरूरी काम से भटका देता है।

डिजिटल कंपनियां इस प्रक्रिया का लाभ उठाती हैं। वे हमें लगातार ऐसा कंटेंट देती हैं, जो हमारे दिमाग को बांधे रखता है। इसमें सोशल नेटवर्किंग साइट्स, गेमिंग ऐप्स, और स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स की भूमिका प्रमुख होती है।

जब हम इस डिजिटल दुनिया में खो जाते हैं, तो हमारे शरीर में डोपामिन नामक ‘फील गुड’ हार्मोन रिलीज होता है। हालांकि, इसकी अधिकता से दिमाग को लंबे समय तक नुकसान पहुंच सकता है।

‘पॉपकॉर्न ब्रेन’ के प्रभाव

“पॉपकॉर्न ब्रेन” (Popcorn Brain) के शिकार होने पर व्यक्ति की जीवनशैली और मानसिक स्वास्थ्य पर कई नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं:

  1. ध्यान भंग होता है:
    डिजिटल नोटिफिकेशन हमारे ध्यान को बार-बार बाधित करते हैं, जिससे कामकाज की उत्पादकता कम हो जाती है।
  2. डिप्रेशन और एंग्जाइटी:
    लगातार कनेक्टेड रहने का दबाव व्यक्ति को मानसिक तनाव, चिंता और डिप्रेशन की ओर ले जा सकता है।
  3. गहरे कामों से दूरी:
    लोग मीनिंगफुल एक्टिविटीज जैसे किताबें पढ़ना, पॉजिटिव बातचीत करना, या नई स्किल सीखने से दूर हो जाते हैं।
  4. नींद पर असर:
    स्क्रीन से निकलने वाली ब्लू लाइट हमारी नींद की गुणवत्ता को खराब कर सकती है, जिससे शरीर और दिमाग को पूरा आराम नहीं मिलता।
  5. आंखों पर असर:
    लंबे समय तक स्क्रीन पर समय बिताने से आंखों में जलन और थकावट महसूस हो सकती है।

‘पॉपकॉर्न ब्रेन’ से बचने के उपाय

हालांकि, इस डिजिटल युग में स्क्रीन टाइम को पूरी तरह खत्म करना संभव नहीं है, लेकिन कुछ आदतें अपनाकर इस समस्या को कम किया जा सकता है:

  • काम और आराम के लिए डिजिटल ब्रेक्स लें।
  • नोटिफिकेशन बंद करें और स्क्रीन टाइम कम करें।
  • तकनीक के उपयोग में संतुलन बनाएं।
  • डिजिटल उपकरणों का इस्तेमाल करते समय समय सीमा तय करें।
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