लोकसभा नेता प्रतिपक्ष: कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी अब संसद में विपक्ष के नेता की नई भूमिका निभाएंगे। कांग्रेस ने प्रोटेम स्पीकर भतृहरि महताब को पत्र लिखकर इस बारे में सूचित किया है। 2014 में मोदी सरकार के बनने के बाद पिछले करीब 10 साल से लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद खाली रहा है। अब राहुल गांधी इस महत्वपूर्ण पद पर आसीन होंगे।
नेता प्रतिपक्ष का महत्व
नेता प्रतिपक्ष का पद भारतीय लोकतंत्र में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इस पद के पास कैबिनेट मंत्री का दर्जा होता है, जो इसे और भी प्रभावशाली बनाता है। नेता प्रतिपक्ष कई संयुक्त संसदीय पैनलों और चयन समितियों का भी हिस्सा होता है, जिनमें सीबीआई के डायरेक्टर, सेंट्रल विजिलेंस कमिश्नर, भारत निर्वाचन आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति, मुख्य सूचना आयुक्त, लोकायुक्त और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों को चुनने वाली समितियां शामिल हैं। इन फैसलों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही अब नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की सहमति भी आवश्यक होगी।
राहुल गांधी को मिलेंगी ये सुविधाएं
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद संभालने वाले सांसद को केंद्रीय मंत्री के बराबर वेतन मिलता है और उसी के अनुरूप भत्ते और अन्य सुविधाएं मिलती हैं। नेता प्रतिपक्ष को हर महीने 3.30 लाख रुपये की सैलरी मिलती है। साथ ही कैबिनेट मंत्री के आवास के स्तर का बंगला मिलता है। साथ ही कार मय ड्राइवर की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाती है। जिम्मेदारी निभाने के लिए 14 लोगों का स्टाफ भी होता है।
महत्वपूर्ण समितियों में भूमिका
नेता प्रतिपक्ष के तौर पर राहुल गांधी लेखा समिति के भी प्रमुख होंगे। यह समिति सरकारी खर्च की जांच करती है, जिससे राहुल गांधी को सरकार के आर्थिक फैसलों पर बारीक नजर रखने और उनकी समीक्षा करने का अवसर मिलेगा।
गांधी परिवार का तीसरा सदस्य
राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष बनने वाले गांधी परिवार के तीसरे सदस्य हैं। उनके पिता राजीव गांधी और मां सोनिया गांधी दोनों ही नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं। राजीव गांधी 18 दिसंबर 1989 से 24 दिसंबर 1990 तक इस पद पर रहे हैं, जबकि सोनिया गांधी 13 अक्टूबर 1999 से 6 फरवरी 2004 तक इस पद पर रही हैं।
पद की प्राप्ति के लिए आवश्यक संख्या
आखिरी बार 2009 से 2014 तक सुषमा स्वराज लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष थीं। 10 साल तक नेता प्रतिपक्ष नहीं होने के पीछे की वजह थी कि 2014 और 2019 के चुनावों में किसी भी विपक्षी दल के पास 54 सांसद नहीं थे। नियमों के मुताबिक, नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए लोकसभा की कुल सीटों के 10% यानी 54 सांसद होने चाहिए। इस बार कांग्रेस 99 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही है।
राहुल गांधी की अनिच्छा और परिवार का समर्थन
सूत्रों के मुताबिक, राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष का पद लेने के लिए अनिच्छुक थे। हालांकि उन्होंने पार्टी की मांगों को मान लिया और उनकी मां सोनिया गांधी और बहन प्रियंका गांधी ने भी उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित किया।
राहुल गांधी के नेता प्रतिपक्ष बनने से कांग्रेस और भारतीय लोकतंत्र में एक नया अध्याय जुड़ गया है। यह पद न केवल उनके राजनीतिक करियर को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा, बल्कि भारतीय राजनीति में भी महत्वपूर्ण बदलाव लाएगा।
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