सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी की कि अगर किसी व्यक्ति का नाम बचपन से ही राहुल गांधी या लालू यादव हो, तो उसे केवल नाम के आधार पर चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता। यह टिप्पणी उस याचिका के संदर्भ में की गई थी जिसमें मांग की गई थी कि चुनाव आयोग को निर्देश दिया जाए कि वह ऐसे उम्मीदवारों को रोके जिनके नाम प्रसिद्ध नेताओं से मिलते-जुलते हैं और जिन्हें जानबूझकर चुनावों में उतारा जाता है ताकि मतदाताओं को भ्रमित किया जा सके।
जस्टिस बीआर गवई की अगुआई वाली पीठ ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति का नाम बचपन से राहुल गांधी या लालू यादव हो तो उसे चुनाव लड़ने से कैसे रोका जा सकता है? इससे उनके अधिकारों पर असर पड़ेगा। अगर किसी के माता-पिता ने उन्हें ऐसा नाम दिया है तो यह उनके चुनाव लड़ने के अधिकार में बाधा नहीं बन सकता।
इस याचिका में यह भी कहा गया था कि इस तरह की प्रथा को “युद्ध स्तर” पर रोका जाना चाहिए क्योंकि “प्रत्येक वोट में उम्मीदवार के भविष्य का फैसला करने की शक्ति होती है”। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि ऐसे मामलों में उत्पन्न होने वाले भ्रम को स्पष्टता से बदला जाना चाहिए और यह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 और चुनाव संचालन नियम, 1961 में उचित संशोधन हो सकता है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को सुनवाई योग्य नहीं माना और याचिकाकर्ता को अपनी अर्जी वापस लेने की अनुमति दे दी। इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि नाम के आधार पर किसी भी व्यक्ति के चुनाव लड़ने के अधिकार को सीमित नहीं किया जा सकता।