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लाल किला मामला: राष्ट्रपति की ‘दया’ शक्ति से फांसी की सजा में हो सकता है बदलाव, जानिए कैसे

लाल किला मामला: राष्ट्रपति की 'दया' शक्ति से फांसी की सजा में हो सकता है बदलाव, जानिए कैसे

लाल किला मामला: लाल किले पर हुए हमले के मामले में एक नया मोड़ आया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दोषी मोहम्मद आरिफ की दया याचिका खारिज कर दी है। इस फैसले से कई सवाल उठे हैं – मौत की सजा कब दी जाती है? राष्ट्रपति की दया शक्ति क्या है? और अब आगे क्या हो सकता है? आइए इन सवालों के जवाब जानते हैं।

लाल किले पर हमला: एक याद

22 दिसंबर, 2000 की शाम को लाल किले पर हमला हुआ था। दो आतंकवादी अंदर घुसे और गोलीबारी शुरू कर दी। इस हमले में तीन लोग मारे गए – दो सेना के जवान और एक आम नागरिक। पुलिस को जांच में कुछ सुराग मिले, जिनसे मोहम्मद आरिफ का पता चला। उसे गिरफ्तार किया गया और बाद में उसे मौत की सजा सुनाई गई।

मौत की सजा: कब और क्यों?

भारत में मौत की सजा बहुत कम मामलों में दी जाती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह सजा सिर्फ “दुर्लभतम मामलों” में दी जाए, जब कोई और रास्ता न बचे। इसका मतलब है कि पहले हर संभव बात पर विचार किया जाए, जो सजा को कम कर सकती है। फिर भी अगर लगे कि मौत की सजा ही उचित है, तभी उसे दिया जाए।

कानून की किताबों में लिखा है कि आतंकवाद और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसे अपराधों के लिए मौत की सजा दी जा सकती है। बाकी अपराधों के लिए इसे खत्म करने की बात कही गई है।

राष्ट्रपति की दया शक्ति: एक और मौका

हमारे संविधान में लिखा है कि राष्ट्रपति किसी अपराधी को माफ कर सकते हैं या उसकी सजा कम कर सकते हैं। इसे ‘दया शक्ति’ कहा जाता है। यह इसलिए दी गई है ताकि अगर कहीं न्याय में कमी रह गई हो, तो उसे सुधारा जा सके।

आरिफ का मामला: अब तक क्या हुआ?

आरिफ को 2005 में मौत की सजा सुनाई गई थी। उसने इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन उसे राहत नहीं मिली। फिर उसने राष्ट्रपति से दया की गुहार लगाई, जिसे अब खारिज कर दिया गया है।

आगे क्या हो सकता है?

आरिफ अभी भी राष्ट्रपति के फैसले को चुनौती दे सकता है। वह कह सकता है कि फैसले में कुछ गलती हुई है या फिर बहुत देर हो गई है। देरी का मुद्दा महत्वपूर्ण है क्योंकि आरिफ पिछले 23 साल से जेल में है, जिसमें से 19 साल वह मौत की सजा के इंतजार में रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी कहा है कि अगर दया याचिका पर फैसला लेने में बहुत देर हो जाए, तो मौत की सजा को कम किया जा सकता है।

इस तरह, आरिफ के पास अभी भी कुछ रास्ते बचे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि आगे क्या होता है। एक तरफ कानून की सख्ती है, तो दूसरी तरफ मानवीय पहलू। इस बीच संतुलन बनाना न्याय व्यवस्था की बड़ी चुनौती है।

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