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Rules of Sundarkand Path: पाना चाहते हैं बजरंगबली की कृपा, इस समय भूलकर भी ना करें सुंदरकांड का पाठ, सुंदरकांड पाठ के नियम

Rules of Sundarkand Path: पाना चाहते हैं बजरंगबली की कृपा, इस समय भूलकर भी ना करें सुंदरकांड का पाठ, सुंदरकांड पाठ के नियम
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Rules of Sundarkand Path: सनातन धर्म में सुंदरकांड पाठ (Sundarkand Path) का विशेष महत्व है। भगवान हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने के लिए इस पाठ को श्रद्धा और नियमों का पालन करते हुए करना आवश्यक है। सुंदरकांड रामायण का एक अद्भुत भाग है, जो भक्तों को साहस, आत्मविश्वास, और शक्ति प्रदान करता है। लेकिन, इसे करने के कुछ नियम और समय विशेष होते हैं, जिनका पालन करना आवश्यक है। अगर इन नियमों का सही तरीके से पालन नहीं किया जाए, तो इसका पूरा लाभ नहीं मिलता।

सुंदरकांड पाठ कब करना चाहिए?

सुंदरकांड पाठ के लिए शुभ समय और सही दिन का चयन करना बहुत ज़रूरी है। सामान्यतः इसे सुबह के समय किया जाना सबसे उत्तम माना जाता है, क्योंकि यह समय सकारात्मक ऊर्जा और शांति का होता है। ज्योतिष के अनुसार, रविवार, मंगलवार और शनिवार जैसे दिनों पर सुंदरकांड पाठ (Sundarkand Path) करना शुभ होता है।

सुबह स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करके और एक शुद्ध स्थान पर हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र के सामने पाठ करना चाहिए। ध्यान रखें कि पाठ के दौरान एकाग्रता बनाए रखना और मन को शांत रखना आवश्यक है।

सुंदरकांड पाठ रात के समय क्यों नहीं करना चाहिए?

शास्त्रों के अनुसार, रात के समय सुंदरकांड पाठ करने से तांत्रिक प्रभाव पड़ने की संभावना बढ़ जाती है। धार्मिक मान्यता है कि रात का समय पूजा-अनुष्ठानों के लिए उपयुक्त नहीं होता। यह समय नकारात्मक ऊर्जाओं से प्रभावित हो सकता है, जो पाठ के प्रभाव को कम कर देता है।

हालांकि, कुछ विशेष अवसरों पर, जैसे दीपावली या करवा चौथ की रात, जब पूजा का विधान शाम के समय होता है, तब सुंदरकांड का पाठ किया जा सकता है। लेकिन यह पूरी तरह से धार्मिक अनुष्ठानों और शुभता पर निर्भर करता है।

तेरहवीं और अमावस्या पर सुंदरकांड पाठ क्यों नहीं करना चाहिए?

तेरहवीं का दिन और अमावस्या तिथि पर सुंदरकांड पाठ करने की मनाही है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, हनुमान जी ने अमावस्या के दिन आराम किया था। उस दिन राहु के साथ हुए एक युद्ध के बाद, हनुमान जी विश्राम की स्थिति में थे। इसलिए, अमावस्या के दिन उनके किसी भी स्तोत्र, कवच या पाठ का पाठ वर्जित माना जाता है।

तेरहवीं के दिन भी सुंदरकांड पाठ नहीं करना चाहिए, क्योंकि उस समय घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव होता है। धार्मिक परंपरा के अनुसार, तेरहवीं के बाद जब वातावरण शुद्ध हो जाए, तब ही पाठ करना शुभ होता है।

सुंदरकांड पाठ के अन्य नियम

पाठ करते समय सही उच्चारण और सही क्रम का ध्यान रखना जरूरी है। किसी भी श्लोक या मंत्र को गलत तरीके से पढ़ने से उसका प्रभाव कम हो सकता है। पाठ के दौरान हनुमान जी को भोग लगाने और दीपक जलाने का विधान है, जिससे वातावरण पवित्र बना रहता है।

सुंदरकांड का पाठ केवल मानसिक शांति और आध्यात्मिक लाभ के लिए ही नहीं, बल्कि जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए भी किया जाता है।


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