देश-विदेश

शहीद दिवस: अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले अमर शहीद – भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के बलिदान को नमन

शहीद दिवस: अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले अमर शहीद – भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के बलिदान को नमन

शहीद दिवस: 23 मार्च का दिन भारत के स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है। आज ही के दिन 1931 में, भारत माता के तीन वीर सपूत – भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु – अंग्रेजी हुकूमत की क्रूरता के आगे शहीद हो गए। इन युवा क्रांतिकारियों ने अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने का साहस दिखाया था और उनके बलिदान ने उस आजादी की अलख को और जगाया जिसके लिए देश का हर नौजवान लड़ रहा था।

क्रांतिकारियों की यात्रा और बलिदान

लाला लाजपत राय की अंग्रेजों के लाठीचार्ज से शहादत ने भगत सिंह के दिल में एक ऐसी आग लगाई थी, जिसे अंग्रेज बुझाने में कभी कामयाब नहीं हो पाए। 17 दिसंबर 1928 को भगत सिंह और राजगुरु ने लाहौर में असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस सांडर्स को मारकर लाला जी की मौत का बदला लिया।

इसके कुछ महीनों बाद, अंग्रेज सरकार की भारत विरोधी नीतियों के खिलाफ भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की असेंबली में बम विस्फोट किया। इन घटनाओं के लिए भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु और अन्य क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। इन्हें ‘लाहौर षड्यंत्र केस’ में मृत्युदंड की सजा सुनाई गई। फांसी से पहले करीब दो साल तक ये वीर जेल में रहे और इस दौरान उनका स्वाध्याय और लेखन जारी रहा।

जिस दिन इनके फांसी की तारीख तय थी, उससे एक दिन पहले ही, 23 मार्च 1931 की शाम को सात बजे के करीब, अंग्रेज़ी सरकार ने चुपके से इन तीनों को फांसी पर लटका दिया। देश की आज़ादी के लिए ये वीर हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर चढ़ गए।

शहीदी दिवस और हमारा कर्तव्य

इन महान क्रांतिकारियों का बलिदान इस बात का प्रतीक है कि अन्याय के आगे झुकना नहीं है। हमें इन्हीं वीर शहीदों के बताए मार्ग का अनुसरण कर देशहित के लिए काम करना चाहिए। शहीद दिवस केवल शहीदों को याद करने का दिन नहीं है, बल्कि उनके अमर बलिदान से सीख लेते हुए देश को एक बेहतर भविष्य देने के संकल्प का दिन भी है।

यह भी पढ़ें- होली है भाई! रंगों में डूबी कहानियां, सुनो तो जरा…

You may also like