महाराष्ट्र

Shiv Sena Rally Dispute: एकनाथ शिंदे के हाथ तीर-कमान, उद्धव ठाकरे पर निशाना; दशहरा रैली को लेकर छिड़ा संग्राम

Shiv Sena Rally Dispute: एकनाथ शिंदे के हाथ तीर-कमान, उद्धव ठाकरे पर निशाना; दशहरा रैली को लेकर छिड़ा संग्राम
Shiv Sena Rally Dispute: दशहरे के मौके पर एक बार फिर शिवसेना के दोनों गुट आमने-सामने आ गए हैं। उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे की शिवसेना के बीच चल रही इस लड़ाई का मुख्य केंद्र इस बार दोनों की दशहरा रैलियां हैं, जो एक शक्तिप्रदर्शन का नया मोर्चा बन गई हैं।

दशहरा रैली पर शिवसेना का टकराव

दशहरे के इस महत्वपूर्ण मौके पर महाराष्ट्र की राजनीति में फिर से हलचल मच गई है। दशहरे की रैली शिवसेना के लिए हमेशा से एक शक्तिप्रदर्शन का मंच रही है, लेकिन इस बार ये रैली शिवसेना के दो हिस्सों—उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना-यूबीटी और एकनाथ शिंदे की शिवसेना के बीच एक राजनीतिक टकराव का केंद्र बन गई है। शिवसेना रैली विवाद (Shiv Sena Rally Dispute) अब एक नए चरण में प्रवेश कर चुका है, जहां दोनों गुट एक-दूसरे पर सियासी हमले करने में लगे हुए हैं।

शिंदे और ठाकरे गुट ने इस रैली को अपने-अपने समर्थकों के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए इस्तेमाल किया है। शिंदे गुट ने आजाद मैदान में रैली आयोजित कर अपनी ताकत दिखाई, जबकि ठाकरे गुट ने शिवाजी पार्क में अपनी परंपरागत रैली का आयोजन किया। शिवसेना रैली विवाद (Shiv Sena Rally Dispute) में अब सोशल मीडिया और वीडियो ट्रेलर भी शामिल हो गए हैं, जहां दोनों गुट खुद को असली शिवसेना साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। शिंदे गुट ने अपने वीडियो में ठाकरे पर निशाना साधते हुए दिखाया कि कैसे उन्होंने शिवसेना को कांग्रेस और एनसीपी के साथ बांध दिया है।

शिंदे बनाम ठाकरे: शक्ति परीक्षण

शिंदे गुट ने इस बार सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल किया है। उनके वीडियो में उद्धव ठाकरे को कांग्रेस के साथ दिखाया गया है, और शिवसेना के बाघ को कांग्रेस की रस्सी से बांधते हुए दिखाया गया है। इसके जवाब में उद्धव ठाकरे की सेना ने भी वीडियो जारी करते हुए कहा कि असली शिवसेना वही हैं और दशहरा रैली का अधिकार भी उनका है। दशहरा रैली का राजनीतिक महत्व (Political Significance of Dussehra Rally) अब इतना बढ़ गया है कि यह केवल एक पार्टी की रैली नहीं, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीतिक दिशा को प्रभावित करने वाली घटना बन चुकी है।

शिंदे गुट का आजाद मैदान में रैली करना यह दिखाता है कि वे उद्धव ठाकरे से अलग अपनी एक नई पहचान बनाने में सफल हो रहे हैं। दूसरी ओर, ठाकरे गुट की रैली शिवाजी पार्क में होने से यह संदेश जाता है कि असली शिवसेना वही हैं जो बालासाहेब ठाकरे की परंपराओं को निभा रहे हैं। दशहरा रैली का राजनीतिक महत्व (Political Significance of Dussehra Rally) इसलिए और भी बढ़ जाता है क्योंकि आने वाले विधानसभा चुनावों में इस रैली का सीधा प्रभाव पड़ेगा।

राजनीतिक संदेश और आगामी चुनावों पर असर

शिवसेना की दशहरा रैलियां हमेशा से ही राजनीतिक संदेश देने का एक बड़ा मंच रही हैं। बालासाहेब ठाकरे ने इस परंपरा की शुरुआत की थी और तब से यह रैली शिवसेना के लिए एक बड़ी ताकत बन गई। हालांकि, इस बार यह शक्ति प्रदर्शन दो अलग-अलग गुटों के बीच हो रहा है। उद्धव ठाकरे का गुट शिवाजी पार्क में रैली करता रहा है, जबकि शिंदे गुट अब आजाद मैदान में अपनी शक्ति दिखाने को तैयार है।

इन रैलियों के राजनीतिक मायने इस बार और बढ़ गए हैं क्योंकि विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। दोनों ही गुट बड़ी से बड़ी संख्या में समर्थकों को जुटाने का प्रयास कर रहे हैं ताकि वे यह दिखा सकें कि असली शिवसेना कौन है। शिंदे और ठाकरे के इस शक्ति परीक्षण का असर न केवल शिवसेना के भीतर बल्कि महाराष्ट्र की पूरी राजनीति पर पड़ेगा। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह शिवसेना रैली विवाद (Shiv Sena Rally Dispute) किस दिशा में जाता है और इसका राजनीतिक परिणाम क्या होता है।

#ShivSenaRally, #DussehraClash, #UddhavVsShinde, #ShivSenaPolitics, #MaharashtraElection

ये भी पढ़ें: Weapon worship on Vijayadashami: RSS की विजयादशमी शस्त्र पूजा, क्यों दशहरे पर संघ करता है हथियारों की पूजा?

You may also like